मध्य प्रदेशसमनापुर

अनेक योजनाओं के बाद भी पीछे रह गई बैगा जनजाति

समनापुर डिंडोरी भुवनेश्वर पड़वार (पप्पू)

सदियां बीतीं बहुत कुछ बदला लेकिन इनकी स्थिति यथावत है..?

समनापुर– कहने को तो बैगा जनजाति राष्ट्रीय मानव के रूप में चिन्हित है किन्तु इस अंचल में जहाँ भी बैगा बस्ती हैं वहां बैगाओ का जीवन स्तर बहुत ही दयनीय है शिक्षा,स्वास्थ्य,सड़क,आवास एवं रोजगार में भी कोई प्रगति नहीं दिखाई देती है।

वर्षों तक लंबी लड़ाई लड़ने के बाद वनभूमि पर हेबीटेट राइट्स पाने वाली देश की पहली जनजाति बैगा आज भी समाज की मुख्यधारा में आने के लिए संघर्षरत है।बैगा जनजाति के लिए अनेक योजनाएं संचालित हैं लेकिन जमीनी स्तर पर योजनाओं की हकीकत साफ दिखाई देती है । पिछले कुछ वर्षों में बैगा सेटलमेंट आवास योजना और बैगा जनजाति को ड्राइविंग प्रशिक्षण देने जैसे कार्य में हुई धांधली अखबारों सुर्खियां बन चुकी है। अगर यही आलम रहा तो समय के साथ बहुत कुछ बदलेगा लेकिन इनकी स्थिति यथावत ही रहेगा।

जिले में बैगा विशेष पिछड़ी जनजाति के उत्थान के लिए बैगा विकास अभिकरण की स्थापना वर्षों पूर्व की जा चुकी है । बैगाओ की घटती जनसंख्या को देखते हुए इनके विकास के लिए डिण्डौरी जिले के समनापुर विकासखंड अंतर्गत बैगा बाहुल्य ग्रामों में से कुछेक गांव को चिन्हित कर विकास की कार्य योजना बनाकर काम किया जाना तय किया गया था।समनापुर विकासखंड अंतर्गत कुछ गांव में विकास कार्य हुए हैं परंतु जिन गांव में विकास कार्य नहीं हुए वहां के बैगाओ की स्थिति अतयंत दयनीय है कार्ययोजना के क्रियान्वयन की जमीनी हकीकत यह है कि हद से बदतर गांव की सूरत संवरने का नाम नहीं ले रही है। बैगाओ के जीवन स्तर को भी आज तक विकास की मुख्यधारा से नहीं जोड़ा जा सका है।

जीवन से संघर्ष

जिले में बैगाओं के 52 गांवो को मिलाकर बैगाचक बना है, जिसमें बैगा चिन्हांकित ग्रामों में विशेष स्थान प्राप्त है जिसमें से जनपद पंचायत समनापुर अन्तर्गत 18 गांव आते हैं इन गांवों में विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा निवासरत हैं। प्रदेश शासन द्वारा विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त बैगा जनजाति के जीवन स्तर में सुधार लाने और उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने के लिए विभिन्न माध्यमों से प्रयास किया जा रहा है परंतु बैगाओ की स्थिति में सुधार नहीं आ पाया है समनापुर के चिन्हित ग्रामों में बैगा आज भी जीवन से संघर्ष करते नजर आ रहे हैं।

बैगा समुदाय की परिस्थितियां यहां बेहद चिन्ताजनक है इस समुदाय के सामने वर्तमान में अपना जीवन यापन और भरण-पोषण का विकट संकट विद्यमान है।
समनापुर ब्लाक में बैगा बाहुल्य अधिकांश गांव पहाड़ों के किनारे,जंगलों के बीच बसे हैं। इन गावों में पहुँच मार्ग,पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ की मूलभूत सेवाओं का व्यापक अभाव है।
वर्षो से सरकार द्वारा विकास व सामाजिक सुरक्षा की तमाम योजनाएं यहां बैगाओ के नाम पर बनती व चलती आईं हैं। किंतु अभी तक यथोचित लाभ उन तक नहीं पहुँचा हैं। शोषण,बेगारी के जिंदा उदाहरण लगभग हर गांव में हैं।
जंगलों का कम होना,लघु वनोपज का निरंतर घटना इसके साथ ही जंगलों पर सख्त होता सरकारी नियंत्रण भी यहां बैगा जनजाति की दुर्दशा का बड़ा कारण है। आज भी इस क्षेत्र के हजारों बैगा परिवार जंगल से जलाऊ के गट्ठे रोजाना सर पर ले जाकर नजदीकी कस्बों में बेंचकर अपने घर का चूल्हा जलाते हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों में इनके नौनिहालों का जीवन हर पल कुपोषण और भुखमरी की दोधारी तलवार पर रहता है।डिन्डोरी मध्यप्रदेश का वह जिला है जिसके विषय में राज्य स्तर के अधिकारी यह मानकर चलते हैं कि तो समस्याएं हैं ही, इसलिए कौन इनमे अपना सर खपाये राजनीतिक नेतृत्व के पास अपनी समस्याएं हैं, अब भला बच्चों का स्वास्थ्य,टीकाकरण माताओं की प्रसूति की सेवा आदि भला वोट बैंक कैसे बन सकती है !
स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि समनापुर विकासखण्ड के बैगा चक स्थित स्वास्थ्य केंद्रों में आज भी किसी चिकित्सक की नियुक्ति नहीं है। एक चतुर्थ श्रेणी के स्वास्थ्य कर्मचारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित कर रहे हैं। आधारभूत सुविधा के नाम पर यहाँ फोन, अम्बुलेंस, जननी एक्सप्रेस सेवा जैसी कोई भी सुविधा नहीं है। समस्याएं तब और भी गंभीर हो जाती हैं जब प्रशासन द्वारा लक्ष्य प्राप्ती के लिए जंगल के अन्दर की बैगा महिलाओं को सड़क विहीन वन ग्रामों से टोकनी में बिठाकर खेतों से चलकर पगडंडी के सहारे संस्थागत प्रसव के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में लाया जाता है, जहाँ कोई सुविधा ही नहीं है और जब मामला बिगड़ जाता है तो उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र समनापुर भेजते हैं। जहाँ भी कोई महिला चिकित्सक ना होने के कारण उसे पुनः जिला चिकित्सालय डिण्डौरी रेफर कर दिया जाता है।

बैगा जनजाति वह आदिम जनजाति है,जो कि ब्रिटिश शासन काल के प्रारंभ तक पहाड़ों के ऊपर वनों में अपनी आदिम जीवन पद्धति के साथ निवास करती थी। जिन्हें शासन ने पहाड़ से नीचे लाकर ग्रामों में बसाया। इस प्रक्रिया के साथ ही उनकी समग्र पोषण व स्वास्थ्य ज्ञान परंपरा का क्षय प्रारंभ हो गया। इस प्रकार “बैगा” जिसका शाब्दिक अर्थ ही प्रकृति की शक्तियों का उपयोग कर इलाज करने वाला होता है और जो वास्तव में जड़ी-बूटी से स्वास्थ्य संरक्षण करता था ! वही आज परम्परागत ज्ञान से वंचित हो गए हैं।

नहाने और पीने का पानी एक

विलुप्त हो रही बैगा जनजाति के लोगों को पीने के लिए शुद्ध पानी भी नसीब नहीं हो रहा है,जिस झिरिया में बैगा डुबकी लगाकर नहाते हैं,वही पानी पीने के लिए भी उपयोग करते हैं।गांव के बैगाओ को शुद्ध पानी भी नसीब नहीं हो रहा है समनापुर विकासखंड में बैगा जनजाति दूषित पानी पीने से बीमार हो रहे हैं।
वहीं जानकारों का मानना हैं की राष्ट्रीय मानव कहे जाने वाले बैगाओं में भीख मांगने का रिवाज नहीं है लेकिन अति गरीबी के चलते परंपरा तोड़ भीख मांगने को मजबूर है वे कसबों में भीख मांगते देखे जा सकते हैं, इन्हें मजबूरन ऐसा कदम उठाना पड़ रहा है। समय रहते अगर इन बैगा जनजाति के लोगों का ध्यान नहीं रखा गया तो वो दिन दूर नहीं जब इन्हें इतिहास के पन्नों में गिना जायेगा ।।।

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