छत्तीसगढ़विचार पक्ष

आम के आम गुठली के दाम “चार चिरौंजी” एक भारतीय फल

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सुरेश सिंह बैस शाश्वत

आज हम आपको बताने जा रहे हैं यहां पाए जाने वाले चार- चिरोंजी के बारे में, जो स्वाद में काफी लजीज होते हैं। चार के पेड़ पर गोल और काले कत्थई रंग का एक फल लगता है। पकने के बाद यह फल काफी मीठा और स्वादिष्ट होता है और उसके अन्दर से बीज मिलते हैं। चिरौंजी को प्रियाल, खरस्कंध, चार, राजादन, सन्नकद्दृ, पियाल, चारोली आदि नामों से जाना जाता हैं। बीज या गुठली का बाहरी आवरण काफी मजबूत होता है। इसे तोड़कर उसकी मींगी निकलते है। यह मींगी ही चिरौंजी कहलाती है और एक सूखे मेवे की तरह इस्तेमाल की जाती है। चिरौंजी के अतिरिक्त, इस पेड़ की जड़ों, फल, पत्तियां और गोंद का भारत में विभिन्न औषधीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता है। कई भारतीय इन चिरौंजी का उपयोग मिठाई बनाने में एक सामग्री की तरह इस्तेमाल करते हैं।यह चिरौंजी एक बेहद ही महंगा मेवा है। एक समय तो ऐसा भी था कि बस्तर में आदिवासी पहले नमक के बदले चिरौंजी दिया करते थे। नमक के भाव में चिरौंजी बेचीं जाती थी। लेकिन अब समय के साथ स्थिति भी बदल गई है। छत्तीसगढ़ व बस्तर में जगदलपुर का टाकरागुड़ा ऐसी जगह है जहां के पांच सौ एकड़ के जंगल में अस्सी प्रतिशत चार के पेड़ है। वहां के ग्रामीण चिरौंजी बेचकर काफी मुनाफा कमाते है।चार चिरौंजी भारत का मूल निवासी पेड़ हैं। यह भारत देश के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में बहुतायत में पाया जाता है। मध्यप्रदेश के बेतुल में इसके काफी पेड़ पाए जाते है। वहीं, बस्तर सरगुजा में इसके पेड़ों के सघन वन भी हैं। इस पर गोल और काले कत्थई रंग का एक फल लगता है।चिरौंजी बीज में करीब पचास प्रतिशत से अधिक तेल होता हैं, जो की चिरौंजी का तेल नाम से जाना जाता है और उसका प्रयोगकॉस्मेटिक और चिकित्सीय उद्देश्य से किया जाता है। जब इन बीजो को खुद से फ़ोड कर चिरंजी निकालने की कोशिश की

जाती है तो आधे अधुरी चिरंजी ही मिल पाती है। कभी कभार साबूत चिरौंजी मिल जाती है तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहता है। मशीनरी युग मे चार के इन बीजो से परिषकृत चिरौंजीबाजारो मे महंगे दामो मे बिकती है। बस्तर मे इन चार बीजो का
संग्रहण बड़े ही जतन से किया जाता है।चिरौंजी के फ़ायदे भी अनेको है। इस फल का सेवन हमे अनेक बीमारियों से बचाता हैं। मीठी चीजों में खासतौर पर इस्तेमाल होने वाली चिरौंजी में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। चिरौंजी में प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा इसमें विटामिन सी और बी भी पर्याप्त मात्रा में होता है। चिरौंजी में प्रोटीन फाइबर कैल्शियम आयरन आयरन विटामिन बी टू‌ विटामिन सी और फास्फोरस काफी मात्रा में होते हैं। चिरौंजी शारीरिक कमजोरी को दूर करने में सहायक होता है। शरीर की खुजली में इसका प्रयोग बहुत फायदेमंद होता है। यदि आप पांच से दस ग्राम चिरौंजी पिसकर दूध के साथ मिक्स करके खाते हैं तो आपके शरीर की कमजोरी दूर हो जाएगी।सर्दी जुखाम और खांसी में भी चिरौंजी कारगर साबित होता है। डायरिया होने पर पांच से दस ग्राम चिरौंजी को पिसकर गर्म पानी के साथ लेने से दस्त रुक जाते हैं चिरौंजी को पीस कर दूध के साथ इसका लेप चेहरे पर लगाने से पिंपल की समस्या दूर हो जाती है।
अगर आप बालों की समस्या से परेशान हो गए हैं तो चिरौंजी का प्रयोग करें। चार वर्षभर उपयोग में आने वाला पदार्थ है जिसे संवर्द्धक और पौष्टिक जानकर सूखे मेवों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।चिरौंजी दो प्रकार की वस्तुओं को कहते हैं एक तो जो मंदिर में प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है वह है चिरौंजी दाना। और दूसरी है वह मिलती है हमें एक वृक्ष के फलों की गुठली से। जो फलों की गुठली फोड़कर निकाली जाती है। जिसे बोलचाल की भाषा में पियाल, प्रियाल या फिर चारोली या चिरौंजी भी कहा जाता है। चारोली का वृक्ष अधिकतर सूखे पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। दक्षिण भारत, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर आदि स्थानों पर यह वृक्ष विशेष रूप से पैदा होता है। इस वृक्ष की लंबाई तकरीबन पचास से साठ फीट के आसपास की होती है। इस वृक्ष के फल से निकाली गई गुठली को मींगी कहते हैं। यह मधुर बल वीर्यवर्द्धक, हृदय के लिए उत्तम, स्निग्ध, विष्टंभी, वात पित्त शामक तथा आमवर्द्धक होती है। चारोली का यह पका हुआ फल भारी होने के साथ-साथ मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य तथा दस्तावार और वात पित्त, जलन, प्यास और ज्वर का शमन करने वाला होता है। इस वृक्ष के फल की गुठली से निकली मींगी और छाल दोनों मानवीय उपयोगी होती है। चिरौंजी का उपयोग अधिकतर मिठाई में जैसे हलवा, लड्डू, खीर, पाक आदि में सूखे मेवों के रूप में किया जाता है। सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका उपयोग किया जाता है।छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र अपने आप में बहुत विशेष है।बस्तर में एक समय में चार के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते थे। लेकिन अब धीरे-धीरे इन पेड़ो की संख्या काफी कम होती जा रही है।

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