22 फरवरी विश्व स्काउट गाइड दिवस पर विशेष- स्काउट गाइड जिनका धर्म है सेवा
सुरेश सिंह बैस शाश्वत
सदियों से चली आ रही सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों ने समाज की रीढ़ को कमजोर कर दिया है। इन्ही सबके बीच किशोरों व युवाओं में पनप रही नशाखोरी की प्रवृत्ति ने समाज को खोखला करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। ऐसे में स्काउट गाइड के छात्र अंध विश्वास कुरीतियों के विरुद्ध जागृति अभियान चलाकर जन स्वास्थ्य जन जागरूकता को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। स्काउट गाइड और रेंजर दैवीय आपदा या विपत्ति में सहायता राशि संकलित कर उसे विपत्तिग्रस्त लोगों के हितार्थ आपात स्थल में भी भेजती हैं। और ये स्वयं भी यथासंभव पहुँचकर वहाँ सहायता कार्य निपटाते हैं। चिकित्सा शिविर और छोटे बच्चों को प्रशिक्षण देने का भी ये कार्य करते हैं।
इनका दूसरों की सेवा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। स्काउट गाइड इस कार्य को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। इनका उद्देश्य ही सेवा है। जनता में जागृति लाना तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के जैसे उन्होंने बीड़ा उठाया है। स्काउट और गाइड दो अलग संस्थाएँ हैं, जिनका उद्देश्य काफी कुछ एक जैसा है। गाइड के तीन विभाग होते हैं। सात से ग्यारह वर्ष तक के गाइड बुलबुल कहलाते हैं। ग्यारह से अठारह वर्ष आयु वर्ग को गाइड कहा जाता है। और इसके बाद का वर्ग रेंजर कहलाता है। ये पच्चीस वर्ष तक की आयु के होते हैं। इसके बाद असिस्टेंट लीडर, ट्रेनर लीडर की श्रेणी आती है। रेंजर का दर्जा हासिल करने के लिये राष्ट्रपति पुरस्कार हासिल करना पड़ता है।
रेंजर बनने के लिये राष्ट्रपति परीक्षा देनी होती है, जो तीन भागों में होती है। प्रवेश, प्रवीण और निपुण! इन तीनों परीक्षाओं को पास करने वाला रेंजर कहलाता है। बिलासपुर के अनेक छात्रों को अब तक राष्ट्रपति पुरस्कार हासिल हो चुके है। इनके अलावा भी स्काउट गाइडअनेक छात्र आज भी इस खिताब को हासिल करने के लिये जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं।
स्काउट गाइड के एक लीडर ने एक बातचीत के दौरान लेखक को बताया कि गाइड और रेंजरों का मुख्य उद्देश्य ही व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाकर उनका चरित्र निर्माण कर आदर्श नागरिक बनाना है। इसके लिये वे रेंजर घूम घूम कर लोकहित सूचनाओं का प्रचार करते हैं। उन्हें यातायात नियंत्रण की शिक्षा हासिल करनी पड़ती है। कई विभिन्न निःशुल्क सेवाएँ उन्हें देनी पड़ती है। वे अंधविश्वास, दहेज प्रथा, प्रौढ़ शिक्षा और अशिक्षा जैसे मुद्दों पर भी अपना पक्ष पेश करते हैं।
ये स्काउट गाइड और रेंजर प्रतिवर्ष शहरों और ग्रामीण अंचलों में जाकर अपनी सेवाएँ देते रहते हैं। गाँवों में जाकर वे गंदगी की सफाई, टीकाकरण शिविरों का आयोजन, प्रौढ़ शिक्षा, साक्षरता कार्यकम सहित सांस्कृतिक कार्यों को ये पूरी मनोरंजकता के साथ करते हैं। पृथ्वी दिवस पर लोगों के बीच जनजागृति लाने हेतु प्रदूषण आदि के परिणामों को लोगों तक पहुँचाते हैं। भूकंप, बाढ़ एवं तबाही जैसी स्थिति में ये चंदा एकत्रित कर राशि राहत कोष में भिजवाते हैं। गत वर्ष कई प्रांतों में आये दैवीय आपदा के समय वहाँ के विपदाग्रस्त लोगों को राहत पहुँचाने में स्काउट गाइड एवं रेंजरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर अपनी सार्थकता पूरी कुशलता से साबित की थी। ये स्काउट गाइड लायंस, लियो और रोटरी क्लब के तत्वावधान में होने वाले कार्यक्रमों में भी अपना सहयोग देते रहते हैं। गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा भी ये प्रदान करते हैं।
– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”