छत्तीसगढ़बलौदाबाजार

के. के. वर्मा को मजदूर संगठन की कमान—क्या बलौदाबाजार में बदलेगी हक़ की तस्वीर?

बलौदाबाजार में मजदूर और किसान वर्ग के लिए यह सप्ताह खास रहा। लंबे समय से सामाजिक और श्रमिक गतिविधियों में सक्रिय रहे के. के. वर्मा को भारतीय जनता मजदूर ट्रेड यूनियन काउंसिल का नव-नियुक्त जिला अध्यक्ष बनाया गया। इस नियुक्ति के बाद जिलेभर में श्रमिक वर्ग में नया जोश और उम्मीद की लहर देखी जा रही है।

गरीब किसान का बेटा, अब मजदूरों की आवाज़
श्री वर्मा एक साधारण किसान परिवार से आते हैं। उन्होंने अपने पहले ही बयान में साफ़ किया कि—

“पद, पैसा और प्रतिष्ठा की दौड़ में बहुत लोग गिरते हैं, लेकिन सेवा भाव से बढ़ने वाला व्यक्ति किसी पद का मोहताज नहीं होता।”यह कथन शायद उन लोगों के लिए था जो उनके लगातार बढ़ते जनाधार को देखकर असहज हैं। उनका यह भी मानना है कि किसी भी उपलब्धि का वास्तविक मूल्य तब होता है जब उसका उपयोग समाज के वंचित वर्ग के लिए किया जाए।

सीमेंट हब की हकीकत पर सीधी चोट
बलौदाबाजार को औद्योगिक जिले के रूप में पहचान मिली है, लेकिन श्री वर्मा ने इसके पीछे छिपी सच्चाई को सामने रखते हुए कहा कि—“कई किसानों ने अपनी पुश्तैनी ज़मीनें उद्योगों को दीं, लेकिन बदले में न रोजगार मिला, न न्यायपूर्ण मुआवज़ा। पढ़े-लिखे युवा बेरोज़गार हैं और मजदूर शोषण का शिकार।”

उनकी यह टिप्पणी कहीं न कहीं प्रशासन और कंपनियों की भूमिका पर सवाल खड़े करती है।

प्रदेश नेतृत्व ने दी बड़ी ज़िम्मेदारी
छत्तीसगढ़ इकाई के सचिव बृजेश कुमार पांडेय ने वर्मा को यह जिम्मेदारी देते हुए निर्देश दिया है कि एक महीने के भीतर जिला कार्यकारिणी का गठन कर रिपोर्ट भेजी जाए। श्री वर्मा ने इसे स्वीकार करते हुए कहा कि संगठन को जमीनी स्तर तक मज़बूत किया जाएगा।

क्या बदलेंगे हालात?
श्री वर्मा ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि श्रमिकों के साथ अन्याय हुआ तो संघर्ष किया जाएगा—चाहे वह कानूनी मोर्चा हो या सड़क पर उतरने की लड़ाई।

उनका संगठन निम्नलिखित बिंदुओं पर काम करेगा:

मजदूरों के अधिकारों की सुरक्षा

शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण और सुरक्षा सेवाओं की व्यवस्था

समानता और न्याय सुनिश्चित करना

ज़रूरत पड़ने पर प्रदर्शन व आंदोलन

समर्थन मिल रहा, लेकिन राह आसान नहीं
उनकी नियुक्ति पर जहां भाजपा नेताओं, किसान संगठनों और बेरोज़गार युवाओं ने स्वागत किया है, वहीं राजनीतिक गलियारों में इसे एक “सक्रिय रणनीति” के रूप में भी देखा जा रहा है। सवाल यह है कि क्या वर्मा अपने वादों को ज़मीनी हकीकत में बदल पाएंगे?

फिलहाल, बलौदाबाजार इंतज़ार कर रहा है—एक असरदार आवाज़ के उठने का।

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