बिलासपुर।छतीसगढ़ में रेल परियोजना के विकास के दावे 2018-19 का केवल दिखावा ही रह गया, इस दिशा में छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस की सरकार अब तक निष्फल होते दिखाई दे रही है। झारसुगुड़ा रायपुर रेल परियोजना 310 किलोमीटर लंबी है! यह परियोजना रेलवे और सरकारों द्वारा केवल प्रस्ताव बनकर ही रह गया, मूर्त रूप नहीं ले सकी । क्षेत्रवासियों द्वारा बीते चार दशकों से अधिक समय से अंचल को रेल लाइन से जोडने की मांग की जाती रही है। जिसको ध्यान में रखते हुए रेल मंत्रालय द्वारा पहले झारसगुड़ा व्हाया कसडोल, बलौदा बाजार, खरोरा, रायपुर होते हुए 310 किमी लम्बी रेल कॉरिडोर का सर्वे उपरांत प्राक्कलन मंजूरी के लिए रेलवे बोर्ड को भेजा गया था, किंतु इस रेल कॉरिडोर को किसी कारणवश मंजूरी नहीं मिल पाई थी। बाद में बिलासपुर रेलवे जोन द्वारा छत्तीसगढ़ रेल कार्पोरेशन लिमिटेड द्वारा खरसिया व्हाया बलौदा बाजार नया रायपुर से दुर्ग तक रेल कॉरिडोर बनाने के लिए सर्वे कराया गया, जिसके बाद छत्तीसगढ़ रेल कार्पोरेशन लिमिटेड के द्वारा इस रेल कॉरिडोर को आर्थिक रूप से फायदेमंद पाकर इसे केन्द्र सरकार राज्य सरकार व प्राइवेट सेक्टर के संयुक्त उपक्रम वाला प्रोजेक्ट का डीपीआर तैयार कर मंजूरी के लिए रेलवे बोर्ड के पास भेजा गया था। इस परियोजना में केन्द्र की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत तथा राज्यश की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत है। प्रोजेक्ट के लिए पूर्व में भी हो चुका सर्वे। सारंगढ़ अंचल में रेल परियोजना को लेकर कोई चुनावी माहौल नहीं बना है। 2014 मे स्वीकृत हो चुके रायपुर, बलौदा बाजार, भटगांव, सरसीवा, सारंगढ़, बरमकेला, सरिया, झारसुगुड़ा रेल लाइन लगभग 310 किलोमीटर लंबी रेल लाइन है। जिसकी अनुमानित लागत लगभग 2163 करोड रुपए आंकी गई थी। वर्ष 2016 में इस रेल लाइन के लिए डीपीआर बनाई जाने के लिए निविदा आमंत्रित करने के बाद से यह फाइल मंत्रालय में धूल खा रहा है। छत्तीसगढ़ रेल कार्पोरेशन के द्वारा इस प्रोजेक्ट के लिए टेंडर जारी कर दिया गया था। इस 266 किमी लंबाई वाले रेल कॉरिडोर के निर्माण के लिए छत्तीसगढ़ रेल कार्पोरेशन लिमिटेड ने रेल लाइन की लागत 4900 करोड़ रुपए व निर्माण कार्य पूर्ण करने की अवधि चार वर्ष रखी थी। इस परियोजना के लिए अगस्त 2018 में भू-अधिग्रहण के लिए बाकायदा विज्ञापन भी जारी किया गया था, परंतु इसके बाद से यह परियोजना ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।लोकतंत्र की आवाज रेल लाइन बनने का सपना, सपना बनकर रह गया। अब तक किसी भी पार्टी के सत्ता सरकार ने इस ध्यानाकर्षण किए होते तो 310 किलोमीटर की यह रेल परियोजना साकार हो सकती थी। लेकिन राजनीतिक गलियारे में केवल आम जन मानस को लुभाने काम ही करते आ रहे है।आस लगाए ग्रामीण अब तक उसी आस में लगे हुए की कब हमारे अंचल में रेल लाइन बनेगी जिससे हमें व्यवसाय, आवागमन रोजगार इत्यादि की बेहतर सेवा प्राप्त हो सके ।
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