छत्तीसगढ़बिलासपुर

नवरात्रि विशेष – खमतराई स्थित आदि शक्ति बगदाई देवी का एक ऐसा मंदिर जहां देवी को पत्थर चढ़ाए जाते हैं

बगदाई माता की फोटो

बगदाई देवी मंदिर का फोटो

सुरेश सिंह बैस शाश्वत/बिलासपुर! शहर से उत्तर दिशा की ओर लगभग पांच किलोमीटर की दूरी में बसा हुआ गांव है खमतराई । हालांकि यह अब शहर के अंदर ही समाहित हो चुका है और शहरी वातावरण में भी तब्दील हो चुका है। खमतराई में ही बगदाई देवी का अनोखा मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भोग प्रसाद की जगह भक्तगण पांच पत्थर चढ़ा कर देवी को प्रसन्न करते हैं। मंदिर के पुजारी पंडित रामकुमार त्रिपाठी का कहना है कि ऐसा अन्यत्र और कहीं भी‌ नहीं होता है जहां देवी को पत्थर चढ़ाया जाता हो। उन्होंने आगामी 9 अप्रैल से प्रारंभ हो रहे चैत्र नवरात्र के कार्यक्रमों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि प्रथम दिन माता का घट स्थापना के साथ नवरात्रि पूजा का प्रारंभ किया जाएगा। यहां पूरे नौ दिन भजन कीर्तन व पूजा आराधना अनवरत की जावेगी इसके पश्चात जवारा विसर्जन और भोग भंडारा का कार्यक्रम संपन्न होगा। बगदाई देवी जिन्हें वन देवी भी कहते हैं दरअसल यह देवी “माता आदि” शक्ति का एक रूप है। इस मंदिर में नवरात्र के समय श्रद्धालुओं बड़ी संख्या पहुंचते हैं। यह मंदिर अनूठा है, इसका निर्माण तो अभी हाल के वर्षों में ही हुआ है, लेकिन इस स्थान पर लोगों की श्रद्धा काफी पुरानी है। लगभग सौ साल से भी ज्यादा देवी यहां विराजमान है. जब यहां जंगल हुआ करता था, और जंगली जानवर घुमा करते थे। और आमतौर पर राहगीरों को जंगली जानवरों के हमले का डर बना रहता था ।तब यहां से आने-जाने वाले लोग अपने घर या गंतव्य तक सकुशल पहुंचने के लिए पांच पत्थर रखकर मनोकामना मांगते हुए आगे बढ़ जाते थे। इसके बाद सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंचते थे। . धीरे-धीरे और भी लोगों को बगदाई वनदेवी के विषय में जानकारी हुई। बाद के वर्षों में यहां जब बस्ती बसी तो यहां पेड़ के नीचे रखी प्रतिमा के लिए आसपास के लोगों ने छोटे मंदिर का निर्माण कराया. मंदिर से जुड़े लोग और श्रद्धालुओं ने बताया कि सौ साल पहले से भी बगदाई वनदेवी यहां स्थापित हैं। तब से देवी को पत्थर समर्पित करने की परंपरा चली आ रही है.। लोगों ने पांच पत्थर रखकर अपनी मनोकामना की और यह परम्परा आज भी अनवरत चली आ रही है। बगदाई देवी के विषय में बताते हुए मंदिर संचालन समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न प्रसाद साहू जी ने बताया कि माता‌ की मूर्ति स्वयंभू स्थापित हैं।क्योंकि लगभग सौ साल से लोग यहां आ रहे हैं। . लेकिन किसी को यह नहीं मालूम है कि देवी की प्रतिमा कौन लेकर आया है? और यहां कैसे पहुंची। साहू जी ने कहा कि मंदिर में अब घृत एवं तेल ज्योति कलश मिलकर के एक हजार से अधिक कलश स्थापित होते हैं ,और दूर-दूर से यहां श्रद्धालुगण अपनी मन्नत मांगने आते हैं। खासकर के नवरात्रि के अवसर पर यहां काफी भीड़ रहती है। उन्होंने कहा कि जिन भी श्रद्धालुजन को अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए ज्योति कलश स्थापित करनी हो तो इन 9981445780 एवं 9752479924 नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। जानकार कहते हैं कि पेड़ के नीचे ही लोगों को देवी की प्रतिमा दिखी थी। शुरुआती दौर पर तो कोई ऐसे ही प्रतिमा होने की सोच ,देवी की ओर ध्यान नहीं देता था। लेकिन बाद में एक जमीदार को देवी ने स्वप्न देकर खुद के होने जानकारी दी। धीरे-धीरे लोगों को देवी के चमत्कारों को जानने लगे । पहले पहल तो छोटे से मंदिर के रूप में निर्माण कराकर देवी को स्थापित किया गया था। मंदिर आने वाले एक भक्त ने बताया कि “देवी के चमत्कार की जानकारी होने पर वे यहां आए हैं। जब इन्हें देवी के दैवीय चमत्कारों की जानकारी लगी तो वह यहां आकर देवी से प्रार्थना करने लगे हैं।. उन्होंने कहा कि अब जो भी हो देवी उनका उद्धार करेगी तो वो फिर से वापस आएंगे। उन्होंने देवी की प्रतिमा के सामने पांच पत्थर रखे और अब उनकी मनोकामना पूरी होने पर वे दोबारा यहां पत्थर चढ़ाने आएंगे।” मंदिर आने वाले एक अन्य भक्त ने बताया कि देवी के चमत्कार का जीता जागता सबूत वह स्वयं है, क्योंकि जब उसको बीमारी हुई थी और डॉक्टरों ने यह कह दिया था कि उनकी बीमारी लाइलाज है। लेकिन इन्हें देवी के दैवीय चमत्कारों की जानकारी लगी तो वह यहां आकर देवी से प्रार्थना कर अपनी बीमारी ठीक होने की मनोकामना की और उन्होंने कहा कि अब जो भी हो देवी ही उन्हें ठीक करेगी. उन्होंने देवी की प्रतिमा के सामने पांच पत्थर रखे और कहा कि माँ मुझे जल्दी ठीक कर दो। . धीरे-धीरे उनकी बीमारी ठीक होने लगी है। इसी तरह देशभर में ऐसे अनेकों मंदिर हैं, जहां माता को प्रसाद के तौर पर फूल-माला की जगह अलग-अलग चीजें चढ़ाई जाती है। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि भक्त अपनी इच्छा पूरी होने यहां पर कंकड़- पत्थर चढ़ाते हैं। साथ ही इसका मां को भोग भी लगाया जाता है। यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है।मान्यता अनुसार भक्त यहां पर पांच पत्थर लेकर आते हैं। साथ ही माता रानी के आगे अपनी इच्छा रखते हुए उसे चढ़ाते हैं। साथ ही जब मन्नत पूरी होने पर भी पांच पत्थर चढ़ाते हैं। बात अब हम पत्थर की करें तो यह स्थानीय नहीं बल्कि काफी विशेष है। यह खासतौर पर खेतों में मिलने वाला गोटा पत्थर है। मान्यता है कि यह देवी मां को अतिप्रिय है। इसलिए इसे मंदिर में अर्पित करने से वनदेवी की असीम कृपा मिलती है।स्थानीय भक्तों के अनुसार वनदेवी मां को मन्नत पूरी होने से पहले और पूरी होने के बाद पांच पत्थर चढ़ाए जाते हैं। लेकिन कोई भी पत्थर नहीं चढ़ाया जाता बल्कि खेतों में मिलने वाला गोटा पत्थर ही चढ़ाया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ी भाषा में चमरगोटा कहते हैं। इसलिए जो भी जातक पूरी श्रद्धा से मां को ये पत्थर चढ़ाते हैं मां उनकी सारी मुरादें पूरी कर देती हैं।खमतराई के मंदिर में भक्त पत्थर के चढ़ावे से देवी को खुश करते हैं। देवी स्वयंभू है और लगभग सौ साल पहले से इनकी यहां स्थापित होने के प्रमाण भी मिलते है। देवी पेड़ के नीचे स्वयं स्थापित हुई थी। इस जगह पहले जंगल हुआ करता था. यहां से गुजरने वाले लोग पत्थर चढ़ाकर आगे बढ़ते थे. देवी को चढ़ावा चढ़ाने के लिए कुछ नहीं होने पर लोग आसपास से पत्थर उठाकर देवी को अर्पित करते थे, तब से चली यह परंपरा चली आ रही है।

– सुरेश सिंह बैस शाश्वत

Related Articles

Back to top button