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पत्रकारिता आज के परिवेश में कैसी है, कैसी होनी चाहिए

सुरेश सिंह बैस/पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, चूंकि यह तंत्र समाज को सूचना देने, जागरूक करने और सत्ता पर नजर रखने का कार्य करती है। एक निष्पक्ष, सत्य और संतुलित पत्रकारिता समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन जब पत्रकारिता अपने मूल उद्देश्यों से भटक जाती है और सनसनी, झूठ या पक्षपात की ओर बढ़ती है, तो उसे पीत पत्रकारिता कहा जाता है। आज के समय में पीत पत्रकारिता एक गंभीर समस्या बन चुकी है। पीत पत्रकारिता वह पत्रकारिता है जिसमें सनसनीखेज, अतिशयोक्तिपूर्ण, भावनात्मक और भ्रामक खबरें प्रस्तुत की जाती हैं।

पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, चूंकि यह तंत्र समाज को सूचना देने, जागरूक करने और सत्ता पर नजर रखने का कार्य करती है। एक निष्पक्ष, सत्य और संतुलित पत्रकारिता समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन जब पत्रकारिता अपने मूल उद्देश्यों से भटक जाती है और सनसनी, झूठ या पक्षपात की ओर बढ़ती है, तो उसे पीत पत्रकारिता कहा जाता है। आज के समय में पीत पत्रकारिता एक गंभीर समस्या बन चुकी है। पीत पत्रकारिता वह पत्रकारिता है जिसमें सनसनीखेज, अतिशयोक्तिपूर्ण, भावनात्मक और भ्रामक खबरें प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका उद्देश्य केवल पाठकों या दर्शकों का ध्यान खींचना होता है, न कि सच्चाई को उजागर करना पत्रकारिता का मुख्य कार्य होता है। समाज को सत्य और तथ्यात्मक जानकारी देना, सत्ता, सरकार और अन्य संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखना, जनमत निर्माण में सहयोग देना, लोगों की समस्याओं को उजागर करना, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना। एक आदर्श पत्रकारिता हमेशा निश्पक्ष, निर्भीक और नैतिक होनी चाहिए।

ये पत्रकारिता वह पत्रकारिता है जिसमें सनसनीखेज अतिशयोक्तिपूर्ण, भावनात्मक और भ्रामक खबरें प्रस्तुत की जाती हैं, जिनका उद्देश्य केवल पाठकों या दर्शकों का ध्यान खींचना होता है, न कि सच्चाई को उजागर करना। भड़काऊ शीर्षक, बिना पुष्टि के आरोप लगाना, तथ्य से अधिक कल्पना पर आधारित लेख, निजी जीवन में अनावश्यक खलल डालने वाली खबरें लिखना। प्रसिद्ध व्यक्तियों या घटनाओं को गलत ढंग से प्रस्तत करना। यह समाज को सूचना देने, जागरूक करने और सत्ता पर नजर रखने का कार्य करती है। एक निष्पक्ष, सत्य और संतुलित पत्रकारिता समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन जब पत्रकारिता भूमिका अपने मूल उद्देश्यों से भटक जाती है और सनसनी, झूठ या पक्षपात की ओर बढ़ती है, तो उसे पीत पत्रकारिता कहा जाता है।

आज के समय में पीत पत्रकारिता एक गंभीर समस्या बन चुकी है। जैसे बॉलीवुड स्टार का रहस्यमय रात में गायब होना! इस तरह के शीर्षक बिना किसी पुष्ट जानकारी के बनाए जाते हैं। किसी राजनेता के बयान को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना ताकि विवाद खड़ा हो सके। इसका प्रभाव यह होता है कि समाज में अफवाह

और भय का माहौल बनता है। जनता का विश्वास मीडिया से उठता है। असल मुद्दों से ध्यान भटकता है। ठीक वैसे ही छद्म पत्रकारिता वह पत्रकारिता है जिसमें जानबूझकर झूठी, मनगढ़ंत या भ्रामक सूचनाएं फैलाई जाती हैं। इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति, समुदाय, विचारधारा या संगठन के प्रति लोगों की राय को प्रभावित करना होता है।

अनैतिक पत्रकारिता वह है जिसमें झूठ, पक्षपात, भड़काऊ भाषा, निजता का हनन, पैसे या दबाव के बदले

खबरें चलाना, जैसे काम शामिल होते हैं।

पीत पत्रकारिता का एक और पहलू है पेड़ न्यूज़ जो पैसे लेकर किसी विशेष दल या व्यक्ति के पक्ष में खबर चलाना। निजता में दखलः सेलिब्रिटी, पीड़ित या आम नागरिक की निजी जिंदगी को बिना अनुमति के सार्वजनिक करना। भ्रामक हेडलाइनः क्लिव के लिए गलत या आधी सच्चाई वाली सुर्खियां बनाना । भ्रामक हेडलाइन: क्लिक पाने के लिए गलत या आधी सच्चाई वाली सुर्खियां बनाना हेट स्पीच और भड़काऊ कंटेंट जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भड़काने वाली खबरें चलाना किसी नेता से पैसे लेकर उनके पक्ष में रिपोर्टिंग करनारेप पीड़िता की पहचान उजागर करना।

चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर झूठी सूचनाएं फैलाना इससे समाज में भ्रम और अविश्वास बढ़ता है। हिंसा और तनाव की स्थिति बनती है। पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगता है। फर्जी खबरें और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करना। सोशल मीडिया पर झूठे इमेज के माध्यम से प्रचार करना। स्रोतहीन और असत्यापित सूचनाएं, किसी विशेष एजेंडा को बढ़ावा देना जैसे चुनावों के दौरान विपक्षी दलों के बारे में फर्जी खबरें फैलाना किसी धर्म या जाति विशेष के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण प्रचार पूर्ण खबरों को लिखना।

इससे सामाजिक विभाजन और तनाव, लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर असर, झूठ के आधार पर जनमत निर्माण किया जाता है। इसका मूल उद्देश्य ही होता है कि आम जनता का ध्यान आकर्षित करना, लाभ कमाना, जनता को गुमराह करना, एजेंडा फैलाना, कभी-कभी तथ्य आधारित लेकिन बढ़ा-चढ़ाकर पूरी तरह झूठ या गढ़ी हुई खबरें स्वरूप सनसनीखेज, भावनात्मक मनगढ़ंत, झूठी और उद्देश्यपूर्ण रखा जाए। इनके प्रभाव से जनता का भ्रमित होना: असत्य सूचनाएं लोगों को भ्रमित कर देती हैं और वे गलत निर्णय लेते हैं। धार्मिक व जातीय तनावः विशेषकर छद्य पत्रकारिता समाज में नफरत और हिंसा को बढ़ावा देती है। लोकतंत्र को खतराः जब जनमत झूठ पर आधारित हो जाए, तो लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होती हैं। सच्ची पत्रकारिता पर असरः ईमानदार पत्रकारों की साख भी खतरे में पड़ती है।

इन सब से बचने के लिए जनता को यह सिखाया जाए कि वे खबरों की सत्यता की जांच करना सीखें। कड़े कानूनः फेक न्यूज और पीत पत्रकारिता फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो। नैतिक पत्रकारिता का पालनः पत्रकारों को अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को समझना होगा। सोशल मीडिया निगरानीः सोशल मीडिया पर प्रसारित खबरों पर निगरानी और सत्यापन जरूरी है।

समाज व देश के लिए पीत, छद्म और अनैतिक पत्रकारिता तीनों ही लोकतांत्रिक समाज के लिए घातक हैं। जहां पीत पत्रकारिता सनसनी के नाम पर खबरों को आत्मा को मार देती है, वहीं छथ पत्रकारिता झूठ के सहारे समाज को बांटने का काम करती है। वहीं अनैतिक पत्रकारिता तो सबसे बुरी होती है ऐसे में पत्रकारों, मीडिया संस्थानों और आम जनता सभी को मिलकर इस पर अंकुश लगाना होगा ताकि पत्रकारिता अपने मूल उद्देश्य सत्य की खोज और जनसेवा पर टिकी रह सके । नैतिक पत्रकारिता वह है जो सत्य, निष्पक्षता, स्वतंत्रता, मानवता और उत्तरदायित्व जैसे मूल्यों का पालन करते हुए समाज को सही और प्रामाणिक जानकारी प्रदान करती है।

वास्तव में पत्रकारिता का मुख्य कार्य होता है। समाज को सत्य और तथ्यात्मक जानकारी देना, सत्ता, सरकार और अन्य संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखना, जनमत निर्माण में सहयोग देना, लोगों की समस्याओं को उजागर करना, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करना, एक आदर्श पत्रकारिता हमेशा निश्पक्ष, निर्भीक और नैतिक होनी चाहिए।

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