छत्तीसगढ़बलौदाबाजार

भवानीपुर निवासी जेठूराम टंडन के द्वार कब पहुंचेगा डबल ईंजन सरकार की योजनाओ का लाभ 

मिथलेश वर्मा/बलौदा बाजार/जनकल्याणकारी योजनाओं की राह देखते-देखते आर्थिक तंगी में कट रही है जेठूराम टंडन की जिंदगी। आठ माह से पेंशन योजना का लाभ भी नहीं मिला है जेठूराम टंडन को।

केंद्र और राज्य सरकार गरीब लोगों के लिए अनगिनत योजनाएं चला रही हैं ताकि ग्रामीणों के जीवन को सुधारा जा सके और उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके। लेकिन, हमारे सिस्टम की खामियों के कारण ये योजनाएं धरातल पर नहीं पहुंच रही हैं। राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं को आम जनता तक कैसे पहुंचाया जाए, यह एक बड़ी चुनौती है जिससे गरीब और दीन-दुखियों को इन योजनाओं से लाभान्वित कर उनके जीवन को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जा सके। लेकिन, नीचे से ऊपर तक भ्रष्ट और निष्क्रिय अधिकारी कर्मचारियों की नाकामियों के कारण आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन स्तर में कोई सुधार नहीं हो रहा है।

बलौदा बाजार जिले के पलारी विकासखंड के ग्राम भवानीपुर के आश्रित ग्राम जुनवानी में जेठूराम टंडन की स्थिति इसका ताजा उदाहरण है। जेठूराम अपने आठ सदस्यीय परिवार के साथ टूटी-फूटी मकान में रहने को मजबूर हैं। उनके घर की माली हालत देखकर ही समझा जा सकता है कि वे कितनी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। हमारे संवाददाता ने जब उनके घर का दौरा किया, तो देखा कि घर में चावल के अलावा कोई महंगी वस्तु नहीं थी। केवल कपड़े, बर्तन और अनाज ही रखा हुआ था।

जेठूराम बताते हैं कि उन्हें पेंशन के अलावा किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला है और पेंशन भी पिछले आठ महीनों से नहीं मिल रही है। इस कारण उनके परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो गया है। 72 वर्षीय जेठूराम बताते हैं कि उनके घर में आय का कोई साधन नहीं है। कई दिनों तक उन्हें भूखा ही सोना पड़ता है क्योंकि गांव में राशन की दुकान नहीं है और राशन लेने के लिए उन्हें चार किलोमीटर दूर भवानीपुर जाना पड़ता है।

जेठूराम के परिवार में कुल 8 सदस्य हैं। उनका बड़ा बेटा 19 साल का है, जो रायपुर में काम करता है और कभी-कभार ही पैसे भेजता है। बाकी घर का खर्च जैसे-तैसे गरीबी में ही गुजर रहा है। जेठूराम बताते हैं कि वर्षों से वे इसी घर में निवास कर रहे हैं और आज तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ उन्हें नहीं मिला है। उनकी जमीन भी नहीं है, जिससे उन्हें कोई मदद नहीं मिल पाती।

जेठूराम के छह बच्चे हैं, जिनमें चार बेटियां और दो बेटे हैं। बड़ा बेटा रायपुर में काम करता है और दूसरे नंबर की बेटी 16 वर्ष की है, बाकी सभी बच्चे अभी कम उम्र के हैं। दो बच्चों का आधार कार्ड न होने के कारण उन्हें 14 किलो चावल भी नहीं मिल पाता है।

जेठूराम का घर ताल पत्री और खादर का है, जो वर्षों से नहीं बदला गया है। आर्थिक तंगी के कारण वे इस घर में रहने को मजबूर हैं। उम्र बढ़ने के साथ उनकी मेहनत करने की क्षमता भी घट गई है और इस कारण उन्हें अब ज्यादा काम पर भी नहीं बुलाया जाता। गांव में एक बीघा जमीन भी नहीं है, जिससे कोई मदद नहीं मिल पाती।

शासन-प्रशासन से मदद की आस लगाए बैठे जेठूराम की जिंदगी आर्थिक तंगी में ही गुजर रही है। अगर सरकार की योजनाएं सही समय पर उन तक पहुंचें, तो वे अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए स्कूल भेज सकते हैं और एक बेहतर जीवन जी सकते हैं।

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