छत्तीसगढ़

CG में गांवों तक पहुंचने अब तक नहीं बन पाई सड़क, राशन लेने 35 किलोमीटर पैदल जाते हैं आदिवासी, रास्ते में बिताते हैं एक रात

बस्तर के अबूझमाड़ के कई ऐसे गांव हैं, जहां आज तक कोई पहुंच मार्ग ही नहीं बना है. इसके चलते आज भी कई पंचायत में सरकारी राशन दुकान पंचायत में नहीं खोली जा सकी है. इसके चलते कांकेर और नारायणपुर जिले के आदिवासियों को पीडीएस का राशन लेने कई किलोमीटर पैदल सफर करना पड़ रहा है.

बता दें कि जिले में दर्जनों राशन की शासकीय दुकानें संचालित हैं. जिस पंचायत के लिए राशन दुकान स्वीकृत की गई है, उस पंचायत तक जाने के लिए कोई रास्ता ही नहीं बनाया गया है. हालांकि आदिवासियों ने चारपहिया वाहनों के आवागमन के लिए काम चलाऊ सड़क तैयार की है, जिससे वहां तक पीडीएस का राशन पहुंचाया जा सकता है.ग्राम पंचायत पांगुर में साल 2019 में राशन रखने के लिए गोदाम बनकर तैयार किया गया है, लेकिन सड़क नहीं होने का हवाला देकर वहां तक राशन ही नहीं पहुंचाया जाता, जबकि पांगूर गांव के जंगल में बांस कटाई के लिए ट्रक पहुंच जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि छोटेबेठिया तक जाने के लिए करीब 35 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. यहां रहने वाले आदिवासी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं. ऐसे में इन आदिवासियों को पैदल ही छोटेबेठिया जाना पड़ता है. एक आदिवासी किसान ने बताया कि गांव वालों को 200 रुपए प्रति परिवार के हिसाब से चंदा देना पड़ता है तब कहीं छोटेबेठिया से राशन लाने के लिए ट्रैक्टर का जुगाड़ हो पाता है. ऐसे में इन आदिवासियों की मुश्किल भरी जिंदगी का अनुमान लगा सकते हैं. कोंगे पांगुर के अलावा भी ग्राम कोडोनार, बोरानिरपी, बियोनार, कोरसकोडो, सितरम, आलदंड, मुसपर्सी, गारपा, बिनागुंअबूझमाड़ के आदिवासियों को कोयलीबेड़ा, ओरछा जैसी जगहों पर चावल लेने के लिए जाना पड़ता है. लोग महीने में एक बार साप्ताहिक बजार के दिन अपना राशन लेने आते हैं. आदिवासियों ने यह भी बताया कि लोग राशन के लिए दो दिन पहले घर से निकलते हैं. उसके बाद राशन लेने के बाद एक रात रास्ते में ही रुकते हैं. आदिवासी राशन लेने के लिए 30 से 50 किलोमीटर तक का सफर तय करते हैं. डा, हचेकोटी, आमाटोला जैसे दर्जनों गांव शामिल हैं, जहां के ग्रामीणों को राशन लेने 35 किमी पैदल जाना पड़ता है.

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