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सारंगढ़: 11 साल में नहीं बना सके नहर, दो करोड़ का मुआवजा बढ़कर हो गया 78 करोड़

सारंगढ़ जिले में घोराघाटी गांव में लात नाले पर 2012 में आठ करोड़ की लागत से जलाशय तक बन गया, लेकिन 11 साल बाद भी नहर नहीं बनाई जा सकी। इससे लगभग दो हजार हेक्टेयर पर सिंचाई के उद्देश्य से बनाया गया डेम अनुपयोगी है। यह आसपास के लोगों के लिए घूमने-फिरने की जगह बन गई है। जलसंसाधन विभाग के अफसरों का कहना है कि पहले भूअर्जन पर करीब 2 करोड़ रुपए खर्च करना था। इस काम में अब 78 रुपए खर्च होंगे। इसकी स्वीकृति शासन से मांगी गई है।

घोराघाटी में 12 साल पहले बनाए गए इस डेम की नहरें अब तक नहीं बनाई जा सकी हैं। घोराघाटी डेम की नहरें बनने से टिमरलगा, गुड़ेली, तुलसीडीह, सरसरा, धौराभांठा, कपिस्दा, ठाकुरपाली, खर्री बड़े, छोटे मुड़पार, अमेठी, क्योटीनडोढ़ी, खरवानी बड़े, मौहाढोढा, चिखली, माधोपाली, सालर, सेमरापाली, हसौद, खैरझीटी, टांगर समेत कुछ गांवों में पानी पहुंचाने की योजना थी। उल्लेखनीय है कि सारंगढ़ जिले के बरमकेला, सरिया ब्लाक में अत्याधिक बोर खनन के कारण सालदर साल भूजल स्तर गिरता जा रहा है। वहीं सारंगढ़, सरिया, बरमकेला में इस साल छोड़ दें तो अक्सर औसत से कम बारिश होती रही है। ऐसे में असिंचित रकबे को सिंचाई के लिए पानी की जरूरत होती है। शासन के आदेश का इंतजार ^नहर के सेकंड फेज का काम अटका हुआ है। पहले इसके भूअर्जन पर लगभग 2 करोड़ खर्च होना था, अब 78 करोड़ रुपए खर्च होगा। शासन की स्वीकृति के लिए फाइल भेजी जा चुकी है। -एसके गुप्ता, ईई, जलसंसाधन विभाग

नहर बनने पर 31 गांव के खेतों में पहुंचता पानी 2012 में 8 करोड़ की लागत से लात नाला डायवर्सन परियोजना के तहत डेम बनाया गया था। सारंगढ़ से 14 किलोमीटर दूर स्थित इस डेम से 31 गांव तक पानी पहुंचना था। नहर निर्माण के लिए 38 करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे। डेम से 25 किलोमीटर लंबी नहर बनाई जानी थी। यह काम दो फेज में होना था, अफसरों के मुताबिक पहले फेज में 10 किलोमीटर तक नहर बननी थी, वह लगभग पूरी हो चुकी है। लेकिन फेज टू में 15 किमी लंबी नहर का काम कुछ हिस्से में भूअर्जन नहीं होने से अटक गया है।

मेरी जानकारी में नहीं ^मैं संबंधित अफसरों से बात करती हूं, अभी मामला मेरे संज्ञान में नहीं आया है। -निष्ठा पांडेय, अपर कलेक्टर

मुआवजा कम बताकर किसानों ने रोका काम जलसंसाधन विभाग के अफसरों के मुताबिक 2019 में नहर का काम पूरा कराने के लिए पहल की गई थी। दरअसल भूअर्जन में त्रुटि के कारण पहले कुछ किसानों ने विवाद किया था। कुछ किसानों के खसरा नंबर गलत डाले गए जिससे उन्हें पूरा मुआवजा नहीं मिला। दो-ढाई साल में यह विवाद सुलझा तो कुछ किसानों ने बढ़ी हुए दरों से मुआवजा मांगा और काम यहीं अटक गया। प्रोजेक्ट में देर के कारण रायगढ़ जिले में भी ऐसे विवाद हैं।

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