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क्लोनल नीलगिरी की खेती से किसानों की आय में वृद्धि: चैतमा रेंज के 81 किसानों ने वन विभाग की वृक्ष मित्र योजना का लाभ उठाया

कमल महंत/कोरबा/चैतमा: राज्य शासन के मंशानुसार किसान वृक्ष मित्र योजना के तहत वन विभाग ने किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध करने का निर्णय लिया है। जिसके अंतर्गत कृषकों एवं अन्य हितग्राहियों के खाली पड़े निजी भूमि पर नीलगिरी सहित वाणिज्यिक प्रजातियों के पौधों का रोपण कर सहयोगी संस्था एवं निजी कंपनियों के माध्यम से वृक्षों की खरीदी करते हुए उनकी आय में वृद्धि करना है। कटघोरा वनमंडल में भी इस योजना के तहत किसानों को लाभ दिया जा रहा है। जहां चैतमा वन परिक्षेत्र के अंतर्गत 34350 नीलगिरी एवं 12650 सागौन के पौधे रोपकर अबतक 81 किसानों को लाभान्वित किया गया है।

चैतमा वन परिक्षेत्राधिकारी दिनेश कुर्रे ने किसान वृक्ष मित्र योजना से होने वाले आर्थिक लाभ के बारे में बताते हुए कहा कि योजना के तहत किसानों के अतिरिक्त आय के लिए उनके रिक्त पड़े जमीन में पौधे रोपण कार्य किये जाने है। इसके अलावा इच्छुक भूमि स्वामी, शासकीय- अर्ध शासकीय संस्थाएं, निजी शिक्षण संस्थाएं, पंचायतें इस योजना हेतु पात्र होंगे। जिसके अंतर्गत पात्र हितग्राहियों को अधिकतम 5 एकड़ तक की भूमि पर 5 हजार पौधे निशुल्क दिया जाएगा, साथ ही पौधा रोपण में गड्ढा खोदाई व खाद एवं कीटनाशक दवाई का अनुदान भी दिया जा रहा है। वनपरिक्षेत्राधिकारी श्री कुर्रे ने आगे बताया कि नीलगिरी 5 वर्ष में विकसित हो जाता है, जिसकी लंबाई 35 से 40 मीटर व मोटाई 45 से 50 सेंटीमीटर होने पर इसकी कटाई की जा सकती है। एक एकड़ भूमि पर पांच सौ पौधे रोपे जा सकते है। कटाई के बाद पेड़ो को सहयोगी संस्था व निजी कंपनी समर्थन मूल्य पर खरीदी करेगी और वृक्षों की कटाई एवं परिवहन भी उन्ही के द्वारा किया जाएगा। नीलगिरी के एक पेड़ से लगभग 2 क्विंटल लकड़ी निकलती है, किसान खुले बाजार में भी अधिक कीमत पर जिसे बेच सकते है। किसान नीलगिरी के अलावा सागौन, बांस, मालाबार, नीम, चंदन सहित अन्य आर्थिक रूप से लाभकारी प्रजातियों के वृक्ष रोपण का भी लाभ ले सकते है। यदि कृषकों की भूमि में घेराबंदी और सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो इन वृक्षों के मध्य औषधीय पौधे सर्पगंधा, अश्वगंधा, सतावर, स्टीविया, मालकांगनी, रसना, गिलोय, वायविडंग, नागरमोथा इत्यादि पौधे रोपण कर सकते है। जिस पौधों के उत्पादन को वन विभाग द्वारा समर्थन मूल्य पर खरीदा जाएगा। विभाग द्वारा आवश्यकतानुसार जिसके रख रखाव तथा योजना के क्रियान्वयन में आ रही समस्याओं को दूर करने और आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन दिया जाएगा।

कटाई के चार साल बाद फिर तैयार हो जाता है नीलगिरी का पेड़
परिक्षेत्राधिकारी दिनेश कुर्रे ने बताया कि नीलगिरी पेड़ की कटाई के बाद वह नष्ट नही होता। प्राकृतिक अवस्था मे जड़ समेत ठूंठ को छोड़ दिये जाने पर इससे नई शाखाएं निकलती है। कुर्रे की माने तो पहले साल लगाए गए पौधे को पेड़ बनने में पांच साल का समय लगता है, वहीं ठूंठ से निकला नया शाखा चार साल में ही पेड़ का आकार ले लेता है। ऐसा क्रम तीन से चार बार चलता है। अन्य पौधे या पेड़ों की तुलना में इसकी रखवाली के लिए कोई खर्च नही करनी पड़ती। आगामी वर्ष में अधिक से अधिक किसानों को जोड़ा जाएगा।

संतुलित होगा पर्यावरण, बढ़ेगा भूमिगत जल स्तर
पर्यावरण के जानकारों की माने तो किसी भी क्षेत्र पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए उस क्षेत्र के 33 प्रतिशत भू- भाग का हरियाली से आच्छादित होना आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण के लिए लोग वनक्षेत्र पर ही निर्भर है। वनभूमि सिमटने से ग्लोबल वार्मिंग का असर तेज हो रहा है। क्लोनल नीलगिरी जैसे पौधों की रोपाई से न केवल किसानों की आर्थिक दशा में सुधार आएगी बल्कि पर्यावरण भी संतुलित होगा। इसके पेड़ के रूप में परिवर्तित होने से भूमिगत जल संरक्षित रहता है।

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