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जल है तो जीवन है, बिलासपुर की जलदायिनी माँ अरपा

‌‌‌‌‌‌‌ पेयजल पृथ्वी पर कितनी अहम चीज है यह निम्न सर्वे से पता चल सकता है- की पूरी पृथ्वी में पीने लायक जल की मात्रा केवल एक परसेंट से कुछ अधिक है। यह अत्यंत ही ज्वलंत मुद्दा है। यह किसी एक देश की नहीं बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण से गंभीर मसला है। बिलासपुर शहर के दृष्टिकोण से देखें तो जल स्तर में इतनी कमी आ गई है की शहर के अंदर ढाई सौ फीट के आसपास जल प्राप्त हो रहा है शहर के अंदर महज तीस साल पहले जल का स्रोत केवल तीस पैंतीस फीट पर मिल जाया करता था। और आज यह आलम है कि शहर का जलस्रोत सैकड़ो फिट गहराई में चला गया है । यह आने वाले दिनों के लिए भयावह संकेत है। शहर के जल स्रोत का मुख्य कैंद्र है शहर के बीचो-बीच बह रही जीवन दायनी अंत सलीला अरपा नदी। कुछ वर्षों पूर्व नदी में इस पाट से लेकर उसे पाट तक रेत ही रेत दिखाई देती थी। अब शहर के अंधाधुंध विस्तार में नदी के रेत का इतना दोहन कर लिया है कि आज नदी में दसों किलोमीटर दूर-दूर तक रेत नहीं बचा है। यह रेत ही तो थे जो नदी जल का स्तर बनाए रखते थे । और शहर का जल स्तर भी बना हुआ था लेकिन जब से रेत गायब हुई शहर का जलस्तर दिनों दिन नीचे चला गया। वहीं नदी का इतना दोहन किया गया कि आज अरपानदी गंदगी से पट चुकी है। नदी के चारों तरफ केवल गंदगी ही गंदगी और कीचड़ दिखाई देती है उस पर तुर्रा यह की जलकुंभी का संक्रमण भी फैल चुका है। जो जल के प्रदूषण को और बढ़ा देती है। मुझे अत्यंत ही दुख होता है अरपा का यह हाल देखकर। मेरा बचपन और जवानी अरपा के किनारे ही पला बढ़ा हुआ है। मैंने अरपा के सुनहरे दिनों को भी देखा है जब नदी का पानी बारहों महीना स्वच्छ निरंतर बहा करता था । चारों तरफ रेत ही रेत नजर आते थे। नदी में गंदगी नाम मात्र की थी। हम इस नदी के रेत पर कई तरह के खेल खेला करते थे। उसे जमाने में गर्मियों के दिनों में नदी के रेत में कोचई, ककड़ी और अन्य सब्जियां लगाई जाती थी। अब तो रेत ही नहीं बची तो यह सब हरियाली भी गायब हो गई है। आईए हम सब संकल्प ले और नदी को पुनः उसके पुराने स्वरूप में लौटाने के‌ लिए आज से अभी से प्रयत्न शुरू कर देंं।
जब हम जल पर सहयोग करते हैं तो हम एक सकारात्मक प्रभाव पैदा करते हैं। सद्भाव को बढ़ावा देना, समृद्धि पैदा करना और साझा चुनौतियों के प्रति लचीलापन बनाना भी हमारा अहम दायित्व बनता है। हमें इस एहसास के साथ काम करना चाहिए कि जल न केवल जीवनोपयोगी एक संसाधन है। अपितु एक मानव अधिकार भी है। जो हमारे जीवन के हर पहलू में शामिल है। विश्व जल दिवस 2024 का विषय ‘शांति के लिए जल’ है।इस विश्व जल दिवस पर, हम सभी को पानी के लिए एकजुट होने और शांति के लिए पानी का उपयोग करने, एक अधिक स्थिर और समृद्ध कल की नींव रखने की जरूरत है।पानी शांति पैदा कर सकता है या संघर्ष भड़का सकता है। जब जल दुर्लभ या प्रदूषित होता है, या जब लोग जल तक पहुंचने के लिए संघर्ष करते हैं, तो तनाव बढ़ सकता है। जल पर सहयोग करके, हम हर किसी की जल की जरूरतों को संतुलित कर सकते हैं और दुनिया को स्थिर करने में मदद कर सकते हैं समृद्धि और शांति जल पर निर्भर है। जैसे-जैसे राष्ट्र जलवायु परिवर्तन, बड़े पैमाने पर प्रवासन और राजनीतिक अशांति का प्रबंधन करते हैं, उन्हें जल सहयोग को अपनी योजनाओं के केंद्र में रखना चाहिए। जल हमें संकट से बाहर निकाल सकता है। हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों से लेकर स्थानीय स्तर पर कार्रवाई तक पानी के उचित और टिकाऊ उपयोग के लिए एकजुट होकर समुदायों और देशों के बीच सद्भाव को बढ़ावा दे सकते हैं।
क्या आप जानते हैं? 2.2 अरब लोग अभी भी सुरक्षित रूप से स्वच्छ पेयजल के बिना रहते हैं, जिनमें 11.5 करोड़ लोग भी शामिल हैं जो सतही जल पीते हैं। दुनिया की लगभग आधी आबादी साल के कम से‌ कम हिस्से में पानी की गंभीर कमी का सामना कर रही है।पिछले पचास वर्षों में आपदाओं की सूची में पानी से संबंधित आपदाएँ हावी रही हैं।प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित सभी मौतों में से सत्तर प्रतिशत के लिए पेयजल जिम्मेदार हैं। दुनिया के ताजे पानी के प्रवाह में सीमा पार जल का योगदान 60 प्रतिशत है, और 153 देशों के पास 310 सीमा पार नदी और झील घाटियों में से कम से कम एक प्रतिशत का क्षेत्र है । 468 सीमा पार जलभृत प्रणालियां मौजूद हैं।
‌‌ केवल 24 देशों की रिपोर्ट है कि उनके सभी सीमा पार बेसिन सहयोग व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं।जल संरक्षण और रखरखाव को लेकर दुनियाभर में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिवर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है. आपने ये जरूर सुना होगा कि ‘जल ही जीवन है! जी हां यह परम सत्य है की जल ही जीवन है और जल है तो कल है वरना इस पृथ्वी पर कुछ भी नहीं बचेगा । जल मनुष्य और जीव-जंतुओं के लिए बेहद जरूरी है। खेती करनी हो, घर का काम करना हो, नहाना हो, पीना हो, उद्योग कल कारखाने आदि. इन सभी कामों के लिए जल बेहद जरूरी है ।.हम हर साल देखते है पानी बचाने के लिए बड़े-बड़े अभियन चलाए जाते हैं जहां पानी को लेकर लोग और कई दिग्गज व्यक्तित्व अपने विचार रखते हैं, लेकिन क्या आप ये भी जानते हैं कि आखिर विश्व जल दिवस की शुरुआत कब हुई थी?
आइए बताते हैं. दरअसल 22 दिसंबर, 1992 को संयुक्त राष्ट्र असेंबली में प्रस्ताव लाया गया था, जिसमें ये घोषणा की गई कि 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाएगा. इसके बाद 1993 से दुनियाभर में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
.पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राणियों की उत्त्पत्ति जल से ही हुई है. अन्य ग्रहों पर भी वैज्ञानिकों द्वारा पानी की खोज को प्राथमिकता दी गयी है। . ‘जल ही जीवन है’ यह कथन सत्य है क्यूंकि पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। . अधिकांश संस्कृतियों का विकास भी नदी किनारे हुआ है। पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है। शेष भाग पर मानव, जीव जंतु, जंगल, मैदान पठार या पर्वत आदि मौजूद हैं.।हर प्राणी जल पर निर्भरता रखता है।, आखिरकार विश्व में यह भी सत्य है की जल की कुल खपत में इजाफा हुआ है। और जल के पर्याप्त स्त्रोत सिकुड़ते जा रहे हैं या काम होते चले जा रहे हैं। नदियां, झील, तालाब पट रही है, सूख रही है। कुएं भी पटते चले जा रहे हैं। तो वहीं विश्व भर के ताजे पानी से और स्वच्छ जल से भरपूर जल पठार ( ग्लैशियर )भी सिकुड़ते जा रहे हैं और खत्म होते जा रहे हैं। जल( बर्फ) का विशाल भंडार अंटार्कटिका भी ग्लोबल वार्मिंग के चलते धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है! यह अत्यंत ही चिंतनीय विषय है। भूजल गर्भ स्रोत तो हमने सिंचाई के लिए अंधाधुंध प्रयोग करके खत्म ही कर डाला है। यह सब पेयजल की उपलब्धता की दृष्टि से भयावह स्थिति है। इसके लिए सभी सरकारों, केंद्रीय प्राधिकरणों और वैश्विक संगठनों सहित प्रत्येक व्यक्ति को गंभीरता पूर्वक सोचना होगा और अहम फैसला लेना ही होगा। अन्यथा वह दिन दूर नहीं है, जब पानी पानी के लिए त्राहि त्राहि मच जाएगी ।
– सुरेश सिंह बैस शाश्वत
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