राधा कृष्ण मंदिर स्थापना का अद्भुत इतिहास, किकिरदा ग्राम मंदिर में भव्य आयोजन
सुरेश सिंह बैस/बिलासपुर।चलिए मैं आपको एक ऐसे अलौकिक और भक्ति श्रद्धा के मिसाल के तौर पर बहुत ही आकर्षक और मनमोहक भगवान श्री कृष्ण और राधा के मंदिर स्थापना के इतिहास बारे में जानकारी देते चलूँ। इस मंदिर की स्थापना जब से की गई है ,तभी से भगवान के दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर आते हैं और जिस पंडित जी की भक्ति श्रद्धा के प्रताप से यह मंदिर बना है उनकी कहानी को जानकार बड़े चमत्कृत हो जाते हैं। इस मंदिर में पहुंचने के लिए सर्वप्रथम तिफरा से होते हुए रायपुर रोड में स्थित छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के आगे ग्राम चीचिरदा चलते हैं। यह ग्राम शहर से मात्र दस बारह किलोमीटर दूर हाई कोर्ट से लगा हुआ एक कृषि प्रधान ग्राम है । जहां एक संभ्रांत नागरिक रामकुमार दुबे जी का परिवार निवासरत है। आपको बता दें कि भगवान श्री कृष्ण एवं राधा के मंदिर की स्थापना की शुरुआत इसी परिवार से प्रारंभ हुई थी। यह परिवार बहुत ही धार्मिक और सहिष्णु परिवार से ताल्लुक रखते हैं। सर्वप्रथम इस कहानी के मुख्य नायक इनके दिवंगत दादाजी की बात करते हैं। जिन्होंने अपने जीवन काल में लगभग दो हजार से भी ज्यादा लोगों के यहाँ श्रीमद् भागवत कथा का वाचन किया है। उनका पूरा जीवन भगवान श्री कृष्ण को समर्पित था। वे भगवान शिव के भी उपासक थे ,उन्हीं की प्रेरणा से श्री कृष्ण की भक्ति में डूबे हुए थे। उनकी इच्छा थी कि गांव में एक राधा कृष्ण का भव्य मंदिर बने। इसके लिए वह अपने पोते हीरामणि दुबे से अक्सर चर्चा करते और यह चाहत भी प्रगट करते की उनके जीवन काल में मंदिर का निर्माण पूरा हो जाता। नियति तो ऐसी थी कि उनके जीवन काल में यह मंदिर तो नहीं बन पाया । लेकिन गत चार वर्ष पूर्व हीरामणि दुबे ने अपने दादा की अंतिम इच्छा को पूरा करने का प्रण लेते हुए आखिरकार अपने अथक प्रयासों से मंदिर निर्माण की उनकी इच्छा श्री राधा कृष्ण का मंदिर बनवाकर पूरा किया। अब मंदिर तो बन गया भगवान् की मूर्ति की भव्य रूप से प्राण प्रतिष्ठा भी की गई। भक्त की भक्ति और भगवान की अपरंपार लीला इस इहलोक में चलती रहती है।भक्त इस लोक से परलोक गमन कर जाते हैं लेकिन उनकी भक्ति की चिरकाल तक जीवित रहती है।हुआ यूँ की मंदिर की स्थापना और मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के दिन ही रात्रि प्रहर में दुबे जी के दिवंगत दादाजी उनके सपने में आकर कहते हैं बेटा मंदिर स्थापित कर तुमने बहुत ही अच्छा कार्य किया। यह बहुत प्रसन्नचित लग रहे थे और उन्होंने पोते को आदेश दिया कि भगवान बांके बिहारी की सेवा अब तुम्हें ही करनी है । बस तभी से दुबे जी की अगाध श्रद्धा और भक्ति चरम सीमा में पहुंच गई ।और तन मन धन से वह उसी दिन से अब तब प्रतिदिन राधा कृष्ण का श्रृंगार पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं। छत्तीसगढ़ वाच द्वारा इस बात की सत्यता जानने के लिए उनसे जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि मंदिर में स्थापित श्री कृष्ण की मूर्ति का उनके द्वारा प्रति सोमवार नए वस्त्र के साथ श्रृंगार किया जाता है, जिसमें लगभग तीन घंटे लगते हैं । उन्होंने एक बार बड़ी आश्चर्यजनक और भक्त की भक्ति एवं भगवान के साथ भावनात्मक संबंधों के विषय में बताया कि कई बार जब हम भगवान के मूर्ति का श्रृंगार करते हैं तो फिर केवल भक्त और भगवान ही रहते हैं। इस बीच कोई नहीं रहता । और बड़ी तनमयता के साथ उनका श्रृंगार करता हूं। लेकिन कभी-कभी न जाने क्यों भगवान खेल खेलते हैं। भक्त की परीक्षा लेते हैं, और उनका श्रृंगार बिगड़ जाता है। लाख कोशिशों के बाद भी भगवान का श्रृंगार पूरा नहीं हो पाता तो मैं भी कुछ नाराज होकर भगवान के मूर्ति में चारों तरफ हल्दी पोत देता हूं, फिर कुछ देर नाराज रहने के बाद पुनः भगवान से क्षमा याचना करते हुए उनके श्रृंगार में लग जाता हूं। और अंततः भगवान का श्रृंगार पूरा हो ही जाता है । उन्होंने बताया कि पर्व विशेष जन्माष्टमी को चारों प्रहर भगवान का श्रृंगार एवं पूजन किया जाता है। इस वर्ष भी आगामी 26 अगस्त को जन्माष्टमी पर्व को भव्य रूप से मनाने की तैयारियां पूर्ण कर ली गई है। इस पर्व के समय मंदिर परिसर में जिसमें पूरे गांव एवं आसपास के सैकड़ो हजारों लोग शामिल होते हैं। जन्माष्टमी पर्व के दिन भगवान श्री राधा कृष्ण की मनोहर छवि देखते ही बनती है। जन्माष्टमी पर्व के अवसर पर मंदिर परिसर में अनेक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इस दिवस को पूरे समय भजन कीर्तन एवं भोग प्रसाद वितरण का आयोजन किया जाता है ,एवं दहीहांडी फोड़ने की भी परंपरा सारे गांव वाले और आगंतुक श्रध्दालु जन मिलकर पूरी करते हैं।