छत्तीसगढ़कोरबापाली

कहानी सफलता की : सुअर पालन से मोहन के जीवन मे आई आर्थिक क्रांति, सालाना हो रही तीन से चार लाख की कमाई

कमल महंत/कोरबा/पाली: कुछ समय पहले सुअर पालन एक खास समूह द्वारा ही किया जाता था। तब लोग इस व्यवसाय को हीन दृष्टि से देखते थे। लेकिन अब तस्वीर बदली है। कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने का यह एक अच्छा जरिया है। कई ऐसे लोग है जिनके पास जीविका के आय का स्रोत कम था, सुअर पालन की बदौलत अब वे आर्थिक रूप से सम्पन्न हो गए है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है हरनमुड़ी के मोहन सरोठिया ने, जिन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति को मात देते हुए सफलता के मुकाम तक पहुँचे है। कभी हाट- बाजार में कपड़े का व्यवसाय करने वाले मोहन अब सुअर पालन कर रहे है। इसके साथ ही मोहन अपने गांव एवं आसपास क्षेत्र के लिए रोल मॉडल बन गए है। मोहन ने बताया कि जब उन्होंने यह काम शुरू किया था तब लोग उसे ताने देते थे लेकिन आज लोग उसकी प्रशंसा करते है।

दरअसल मोहन सरोठिया का बचपन बड़े ही कठिनाइयों में बीता। पाली विकासखण्ड अंतर्गत ग्राम हरनमुड़ी के कदमपारा बस्ती में निवासरत मोहन का परिवार खेती किसानी पर निर्भर था। जैसे- तैसे मोहन ने बीए फाईनल पूरी कर किसानी कार्य मे अपने परिवार का हाथ बंटाने लगा। समय के साथ मोहन का विवाह हो गया। जिसके बाद उसने कपड़ा व्यवसाय करने की सोची और करीब लाख रुपए की खरीदी कर हाट- बाजार में जाकर कपड़े बेचने लगा। लेकिन इस व्यवसाय से घर ही चल पाता था, पैसों की बचत नही हो पाती थी। जिसमें उनका मन नहीं लगा तो पशुपालन के बारे में जानकारी ली, तब उन्हें सुअर पालन और इसके लाभ के बारे में जानकारी मिली। जिसके तहत विगत वर्ष 2018- 19 में पशुधन विकास विभाग द्वारा पशु औषधालय पाली के माध्यम से सुकरत्रयी इकाई पालन योजनान्तर्गत 90 प्रतिशत सब्सिडी व 10 प्रतिशत अंशदान पर 1 नर एवं 2 मादा सुअर प्रदान किया गया। जिसमें प्रथम वर्ष में 25 सुअर बच्चे पैदा हुए , जिसे छः माह में बेच खासी आमदनी अर्जित किया। अब वह कम लागत में सालाना लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं। इस व्यवसाय को लेकर मोहन बताते हैं कि उन्हें सुअर पालन का काम सबसे अच्छा लगा क्योंकि इसमें कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सुअर पालन के लिए चुनी चोकर सहित अन्य चीजों की व्यवस्था करना पड़ता है। इसी काम की बदौलत वह आज काफी कुछ हासिल कर चुके हैं और अपने घर पर ही रहकर नौकरी से ज्यादा आमदनी हो रही है। मोहन ने आगे बताया कि सुअर पालन में शुरुआत में 60 से 80 हजार रुपए तक की लागत आती है फिर उसके बाद सालाना लगभग 3 से 4 लाख रुपए आसानी से कमाया जा सकता है। सुअर एक बार में 12 बच्चों को जन्म देती हैं। उनकी देखभाल के लिए कई तरह की सुविधाओं का प्रबंध करना पड़ता है। साथ ही उनके स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना पड़ता है। उन्होंने कहा कि समय- समय पर इनका स्वास्थ्य परीक्षण भी कराना पड़ता है। सुअर में अमूमन बीमारियां कम होती है। फिर भी दस्त, फीवर होने की शिकायत आती है। इसके अलावा मुंह का रोग आता है। पर इससे बचाव के लिए पशु विभाग के डॉक्टर समय- समय पर उपस्थित होकर सुअर का टीकाकरण व अन्य उपचार भी करते है। मोहन ने बताया कि सुअर की संख्या बेहद तेजी से बढ़ती है। जितनी संख्या में आपके पास सुअर होंगे उतना ही मांस प्राप्त होगा। इससे आपका मुनाफा भी बेहद तेजी से बढ़ेगा। वह सालान 6 से 7 लाख रुपए तक सुअर बिक्री करता है जिसके 50 प्रतिशत का लाभ उसे मिलता है। आसपास क्षेत्र के साथ वर्तमान बिलासपुर जिले के अनेको ब्लाक से लोग उनके पास सुअर खरीदी के लिए आते है, जहां वे इसकी आपूर्ति नही कर पा रहे है। मोहन का कहना है कि काम कोई भी हो छोटा या बड़ा नही होता। सुअर पालन करने का नतीजा आज यह है कि उसके जीवन मे पैसे की कमी नही हुई है और घर मे सुख सुविधा के सामान जुटाने में भी सक्षम हुए है व परिवार आज खुशहाली के रास्ते चल पड़ा है। लोग अब मेरे पास सफलता का राज पूछने आते है। अब आगे वे सुअर फार्म विस्तार के लिए प्रयासरत है। जिसके लिए उन्होंने केंद्र शासन की नेशनल लाइव स्टॉक मिशन योजना के तहत 50 प्रतिशत सब्सिडी वाले लोन लेने की प्रक्रिया अपना रहे है। इस विषय पर पशु चिकित्साधिकारी डॉ. यू के तंवर का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के बाद पशुपालन आय का दूसरा मुख्य स्रोत है। पशुपालन में अच्छी कमाई को देखते हुए गत वर्षों में किसानों का रुझान पशुपालन की ओर तेजी से बढ़ा है। किसानों के पास लंबे समय से गाय, भैंस, बकरी या भेंड़ जैसे जानवर है। हालांकि बहुत कम किसानों को पता होगा कि वे सुअर पालकर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। किसानों के लिए सुअर पालना एक लाभदायक व्यवसाय है। जिसमे ज्यादा पूंजी लगाने की जरूरत नही होती है और कम लागत में बेहतर मुनाफा कमा सकते है। वैसे तो सुअर को मुख्यतः मांस के लिए पाला जाता है। जिससे 80 प्रतिशत मांस मिलता है लेकिन इसके बाल, चर्बी, चमड़े, खून, हड्डियां भी महंगे दामों में जिसके कई उत्पाद बनाए जाते है। कम लागत में ज्यादा मुनाफा को देखते हुए गांवों के अलावा अब शहरों में भी लोग बेहद तेजी से इस व्यवसाय को हाथों-हाथ ले रहे हैं.

Related Articles

Back to top button