उच्च स्तरीय टीम गठित कर निष्पक्ष व पारदर्शितापूर्ण जांच कराने ग्रामीणों की शासन- प्रशासन से आग्रह.
कमल महंत/कोरबा/पाली:कटघोरा वनमंडल में भ्रष्ट्र कार्यों को पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल से बढ़ावा मिला है, जहां यह वनमंडल भ्रष्ट्राचार का गढ़ बन चुका है और जहां के अधिकारी पूरे वनमंडल को चारागाह समझ बिना किसी भय के खुलेआम खेला करते आ रहे है। पिछले शासन कार्यकाल में विभाग में ऐसे कई अनियमितता और भ्रष्ट्राचार के मामले सामने आने के बावजूद सिर्फ विभाग बल्कि सरकार के स्तर पर भी तब कोई कार्रवाई नही हुई। वहीं अनेक मामलों में तो दोष सिद्ध होने के बाद भी उनमें पर्दा डाल दिया गया। वहीं अब सुशासन का राग अलापने वाली वर्तमान साय सरकार के राज में भी भ्रष्ट्राचार का यह खेल कटघोरा वनमंडल में थमने का नाम नही ले रहा है। 3 माह पूर्व 97 लाख के 3 तालाब निर्माण में हुए भ्रष्ट्राचार की पोल पहली बारिश ने खोलकर रख दी, जहां एक तालाब का मेढ़ फुट कर बहने के साथ पिचिंग भी बह गया तो दो अन्य तालाब भी क्षतिग्रस्त हो गए। उक्त मामला भी जांच और कार्रवाई के अभाव से जंगल मे धीरे- धीरे कर खोते हुए नजर आ रहा है।
ज्ञात हो कि पाली वन परिक्षेत्र के मुरली सर्किल अंतर्गत रतिजा बीट के कक्ष क्रमांक 599 रतिजा व अंडीकछार के जंगल मे पोस्ट डिपॉजिट फंड से 3 माह पूर्व 97 लाख के 3 तालाब का निर्माण विभाग ने किया था। मानसून की पहली बारिश में जहां रतिजा जंगल में निर्मित तालाब का मेढ़ फूट गया और पिचिंग भी बह गई, वहीं अंडीकछार जंगल के दो तालाब भी क्षतिग्रस्त हो गए। जिन निर्माण को लेकर यह बात सामने आयी कि अधिकारियों ने भ्रष्ट्राचार करने की मंशा से तालाब के निर्माण में मशीन का उपयोग किया। जिससे लागत मजदूरों की तुलना में दो गुना से भी कम आया। वहीं शासन से जारी स्टीमेट के विपरीत कार्य कराया गया, जिनके मेढ़ निर्माण में काली मिट्टी का उपयोग नही किया गया और महज दो से तीन फीट खोदाई करा डबरीनुमा तालाब निर्माण को अंजाम दिया गया। तकनीकी विशेषज्ञों की माने तो जिन कार्यों में 35 से 40 लाख रुपए ही खर्च हुए होंगे। इस तरह लगभग 50- 55 लाख रुपए का भ्रष्ट्राचार तालाब निर्माण के कार्यों में झलक रहा है। जिसकी पोल पहली बारिश में खुल गई और अधिकारियों के भ्रष्ट्र कारनामे सामने आ गए। लेकिन ताज्जुब की बात है कि गुणवत्ताहीन निर्माण कार्य कराकर भ्रष्ट्राचार को अंजाम देने के मामले सामने आने के बाद भी न तो किसी प्रकार के जांच की सुगबुगाहट हुई और न ही किसी कार्रवाई की। प्रदेश की साय सरकार सुशासन की परिकल्पना को लेकर भले ही एक्शन मूड में आकर अफसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ा रही हो और भ्रष्ट्राचारियों पर नकेल कस रही हो, लेकिन भ्रष्ट्राचार की आदत लगे कटघोरा वनमंडल के अधिकारियों पर मुख्यमंत्री का यह दिशा- निर्देश असरकारी नही हो पा रहा है। खास बात तो यह है कि कटघोरा वनमंडल में होने वाले निर्माण कार्यों का जमीनी स्तर पर निरीक्षण न होने के चलते यहां के शीर्ष से लेकर निचले स्तर के अधिकारी इस बात से बेफिक्र है कि कागजों में आंकड़ो की इबारत रचनी है, जितना बन सके उतना रच दो, और इसी नियत से रतिजा बीट में 97 लाख के तालाब निर्माण को अंजाम दिया गया। जिस भ्रष्ट्राचार के मामले में उच्च स्तरीय जांच टीम गठित की जानी चाहिए थी और सूक्ष्मता से जांच कर दोषियों के ऊपर कड़ी कार्रवाई की जरूरत थी, लेकिन ऐसा न होने के फलस्वरूप कटघोरा वनमंडल के भ्रष्ट्रसुरों को बल मिला है। रतिजा व अंडीकछार के ग्रामीणों ने भी माना है कि तालाब खनन का काम केवल अधिकारियों के जेबें भरने के लिए किया गया है, न कि वन्य प्राणियों को जल उपलब्ध कराने के नाम पर बनाया गया। ग्रामीणों ने शासन- प्रशासन से यह आग्रह किया है कि कक्ष क्रमांक- 599, रतिजा व अंडीकछार के जंगल में निर्माण कराए गए तालाबों के जमीनी हकीकत जानने इस निर्माण से संबंधित आंकड़ों की फाइल जब्त कर उच्च स्तरीय जांच टीम गठित करें। यदि निष्पक्ष और पारदर्शितापूर्ण जांच हुई तो यकीनन इस भ्रष्ट्राचार से पर्दा उठ सकता है।