Chandrayaan-3 के तकनीशियन को सैलरी ना मिलने की रिपोर्ट को सरकार ने बताया ‘भ्रामक’
केंद्र सरकार ने ऐसे किसी भी मीडिया रिपोर्ट को खारिज किया है जिसमें कहा गया था था कि चंद्रयान-3 के लिए लॉन्चपैड का निर्माण करने वाले टेक्नीशियन, सैलरी ना मिलने की वजह से अब सड़क किनारे इडली बेचने को मजबूर हैं. बता दें कि रिपोर्ट के अनुसार एचईसी में तकनीशियन दीपक कुमार उपरारिया, जिन्होंने इसरो के चंद्रयान -3 लॉन्चपैड के निर्माण के लिए काम किया था, गुजारा करने के लिए रांची में सड़क किनारे इडली बेचने के लिए मजबूर हैं.
रिपोर्ट में कहा गया था कि उपरारिया की रांची के धुर्वा इलाके में पुरानी विधानसभा के सामने एक स्टॉल है. चंद्रयान-3 के लिए फोल्डिंग प्लेटफॉर्म और स्लाइडिंग दरवाजा बनाने वाली भारत सरकार की कंपनी (सीपीएसयू) एचईसी ने 18 महीने तक उन्हें वेतन नहीं दिया. जिसके बाद उन्होंने सड़क किनारे अपना स्टॉल खोला.
2,800 कर्मचारियों को 18 महीने से नहीं मिला है वेतन
बीबीसी के मुताबिक, एचईसी के करीब 2,800 कर्मचारियों का दावा था कि उन्हें पिछले 18 महीने से वेतन नहीं मिला है. इनमें उपरारिया भी शामिल हैं. दीपक कुमार उपरारिया ने कहा था कि वह पिछले कुछ दिनों से गुजारा करने के लिए इडली बेच रहे हैं. वह अपनी दुकान और ऑफिस का काम एक साथ संभालते रहे हैं. तकनीशियन सुबह इडली बेचता है और दोपहर को कार्यालय चला जाता है. शाम को घर वापस जाने के बाद वो फिर से इडली बेचते हैं.
“लोगों ने कर्ज देना बंद कर दिया”
अपनी स्थिति के बारे में बताते हुए उपरारिया ने कहा था कि पहले मैंने क्रेडिट कार्ड से अपना घर चलाया. जिसके बाद मेरे ऊपर 2 लाख रुपये का कर्ज हो गया और मुझे डिफॉल्टर घोषित कर दिया गया. उसके बाद, मैंने रिश्तेदारों से पैसे लेकर कुछ दिनों तक घर चलाया. उन्होंने कहा था कि अब तक मैंने चार लाख रुपये का कर्ज लिया है. चूंकि मैंने किसी को पैसे नहीं लौटाए, इसलिए अब लोगों ने उधार देना बंद कर दिया है. फिर मैंने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रख दिए और कुछ दिनों तक हमारा घर उस पैसे से चला.
उन्होंने कहा था कि अंत में उन्होंने इडली बेचने का फैसला लिया जब उन्हें लगा कि उनके सामने भुखमरी की नौबत आ जाएगी. उपरारिया ने कहा कि मेरी पत्नी अच्छी इडली बनाती है. इडली बेचकर मुझे हर दिन 300 से 400 रुपये मिलते हैं. मैं 50-100 रुपये का मुनाफा कमाता हूं. इन्हीं पैसों से मेरा घर चल रहा है.
2012 में HEC में नौकरी की शुरूआत की थी
रिपोर्ट के अनुसार उपरारिया मध्य प्रदेश के हरदा जिले के रहने वाले हैं. 2012 में, उन्होंने एक निजी कंपनी में अपनी नौकरी छोड़ दी और 8,000 रुपये के वेतन पर एचईसी में नौकरी ज्वाइन कर ली. सरकारी कंपनी होने के नाते उन्हें उम्मीद थी कि उनका भविष्य उज्ज्वल होगा लेकिन चीजें लगातार खराब ही होती गई.
उन्होंने कहा कि मेरी दो बेटियां हैं. दोनों स्कूल जाती हैं. इस साल मैं अभी तक उनकी स्कूल फीस नहीं भर पाया हूं. स्कूल की ओर से रोजाना नोटिस भेजे जा रहे हैं. यहां तक कि कक्षा में भी शिक्षक कहते हैं कि एचईसी में काम करने वाले माता-पिता के बच्चे कौन हैं खड़े हो जाए. उपरारिया ने कहा कि मेरे बच्चों को अपमानित किया जाता है. मेरी बेटियां रोते हुए घर आती हैं. उन्हें रोते हुए देखकर मेरा दिल टूट जाता है. लेकिन मैं उनके सामने रो भी नहीं पाता हूं. इस बीच, बीबीसी के मुताबिक, यह स्थिति सिर्फ दीपक उपरारिया की नहीं है. उनकी तरह एचईसी से जुड़े कुछ अन्य लोग भी इसी तरह का काम कर अपनी जीविका चला रहे हैं.