सुरेश सिंह बैस शाश्वत/मार्च 1942 ई. में स्टैफर्ड क्रिप्स भारत आये। वह भारत के लिए उत्तरदायी शासन की योजनायें लाये थे। भारत के मुख्य राजनैतिक दलों के सामने उन्होंने अपनी योजनाएँ रखी। सभी दलों के नेताओं ने विचार विनिमय किया। ऊपर से वह योजना बड़ी अच्छी लगती थी। इस योजना के अनुसार वायसराय की कौसिल में सभी दलों के नेताओं को एक निश्चित अनुपात से प्रतिनिधित्व देने की बात कही गई थी। इसमें एक बात यह थी कि युद्ध संबंधी सभी विषय ब्रिटिश सरकार के अधीन रहेंगे ,कांग्रेस ने इस योजना को कुछ कारणों से अस्वीकार कर दिया और उसी साल “भारत छोड़ो” प्रस्ताव पास किया तथा अंग्रेजों से मांग की कि वे तुरंत भारत छोड़ दें।
कांग्रेस के इस आंदोलन मे मुस्लिम लीग ने साथ तथा सहयोग देने से मनाकर दिया। अगस्त 1942 ई. को यह प्रस्ताव पास हुआ और 9 अगस्त को गांधी जी, महादेव देसाई और मीरा बहन को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। इसी दिन मौलाना अबुल कलाम आजाद, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, श्रीमती सरोजनी नायडू तथा कांग्रेस की महासमिति के अन्य सदस्य भी गिरफ्तार कर लिये गये। इसी प्रकार देश के अन्य भागों में भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। नेताओं की गिरफ्तारी से असंतोष तथा उत्तेजना की आग सारे देश में फैल गई। शहरों, गावों तथा कस्बों में आंदोलन पहुंच गया। इस आंदोलन के संबंध में साठ से अधिक व्यक्ति गिरफ्तार किये गये। करीब एक हजार व्यक्ति पुलिस की गोली से मारे गये। लगभग अठ्ठारह हजार व्यक्ति नजर बंद किये गये।
1942 के इस आंदोलन के देश व्यापी रूप ने ब्रिटिश शासन को हिला दिया। अंग्रेज समझ गये कि अब भारत को गोली तथा संगीनों के बल पर गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता है। उधर ब्रिटिश सरकार विश्वयुद्ध के कारण भी बहुत चिंतित थी उसने सोचा कि इस युद्ध में भारत की सहायता लेना बहुत आवश्यक है। 11 मार्च 1942 को ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स मिशन की घोषणा की 23 मार्च 1942 को सर स्टेफर्ड क्रिप्स भारत पधारे। उनका भारत आने का उद्देश्य यह था कि किसी प्रकार भारत को राजी कर लिया जाये कि वह विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की पूरी मदद करें। क्रिप्स महोदय ने देश में कांग्रेस लीग, सिक्ख तथा अन्य नेताओं के साथ विचार-विमर्श किया। क्रिप्स ने भारत के सामने अपना जो प्रस्ताव रखा उसमें कहा गया था कि युद्ध समाप्त होने के बाद भारत में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की जायेगी। क्रिप्स ने लीग को खुश करने के लिये भी कुछ बातें अपने प्रस्ताव में रखी थी। क्रिप्स प्रस्ताव में कहा गया कि भारत एक संघ होगा और कोई भी राज्य भारत संघ मे सम्मिलत होने या सम्मिलित होने के लिये स्वतंत्र होगा। कांग्रेस ने देश की एकता के हित को देखते हुए क्रिप्स प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। ध्यान देने की बात यह है कि शुरू में तो क्रिप्स महोदय भारतीय नेताओं से सहयोग चाहते थे और कुछ देना भी चाहते थे परंतु लगता है कि ब्रिटिश सरकार से उन्हें कुछ नई हिदायत मिली जिसके कारण बाद में उनका रुख कड़ा हो गया था। इस प्रकार क्रिप्स प्रस्ताव.बिल्कुल असफल रहा और देश के नेताओं ने उसकी कड़ी आलोचना की।
कांग्रेस के सामने अब एक ही रास्ता था कि वह ब्रिटिश सरकार का विरोध करे और संघर्ष छोड़ दें। अंग्रेजों की नीति से देश की साधारण जनता भी बहुत क्षुब्ध थी। इसी बीच बम्बई मे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का अधिवेशन हुआ, जिसमें एक प्रस्ताव पास किया गया। चूंकि यह प्रस्ताव 8 अगस्त 1942 को पास हुआ था अतः इसे अगस्त प्रस्ताव कहा जाता है। इस प्रस्ताव में कहा गया कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये एक विशाल संग्राम और आंदोलन चालू किया जाये जो अहिंसक हो ।
8 अगस्त 1942 की रात को यह प्रस्ताव पास हुआ और 9 अगस्त को यानी दूसरे दिन ही गांधी जी तथा कांग्रेस के अन्य नेताओं को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। ध्यान रहे कि इस समय कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेता बंबई में ही थे, क्योंकि वे कांग्रेस की बैठक मे भाग लेने के लिये वहां आये हुये थे। चूंकि कांग्रेस के नेता पकड़ लिये गये, अतः इस आंदोलन को कोई ठीक ठीक मार्गदर्शन नहीं दिया जा सका। नेताओं की गिरफ्तारी से जनता बड़ी क्षुब्ध हो उठी और उसने सरकार की इस चुनौति का जवाब देने का निश्चय कर लिया। जनता के सामने वास्तव में “करो या मरो” का नारा था। वस्तुतः यह जन आंदोलन बन गया। पहले तो आंदोलन शांतिपूर्ण रहा। जुलूस निकाले गये, भाषण दिये गये और नारे लगाये गये परंतु ब्रिटिश सरकार ने इस सब कार्यक्रमों को दबाने का प्रयत्न किया। इसके फलस्वरुप यह आंदोलना हिंसात्मक हो गया।
जन समुदाय जब हिंसक हो जाये और उसको संभालने वाले नेता जेलो में ठूंस दिये गये हों तो फिर भला संयम को स्थान कहां। ब्रिटिश सरकार की दमन नीति से त्रस्त जनता ने उग्र रुप धारण कर लिया। अनेक स्थानों पर सरकारी इमारतें जलाई गई, रेल गाड़ियों को उलटा गया, सरकारी संपत्ति में आग लगाई गई ।तार तथा टेलीफोन व्यवस्था को तोड़ा गया और खजाने लूटे गये। यह आंदोलन जितना उग्र था, ब्रिटिश सरकार ने भी उतनी ही कठोरता से इसे दबाने का प्रयत्न किया। सरकार ने लगभग 600 बार आंदोलन करने वालों पर गोलियां चलाई, 60000. व्यक्ति गिरफ्तार किये गये, एक हजार व्यक्ति गोली से उड़ा दिये गये और उसके बाद जनता से अनेक प्रकार से इसका बदला लिया गया। इस आंदोलन ने उत्तर प्रदेश के बलिया जिले तथा बंगाल के मेदिनीपुर जिले में सर्वाजनिक उग्ररुप धारण किया। बलिया में तो आंदोलन कारियों ने तीन दिन के लिए वहां से ब्रिटिश शासन का बिल्कुल खात्मा कर दिया था। बाद में कठोर दमन कार्यवाही के बल पर ब्रिटिश सरकार पुनः बलिया पर अधिकार जमा पाई। इसके अतिरिक्त आसाम, बम्बई, अहमदाबाद, सतारा आदि इस आंदोलन के मुख्य केन्द्र रहें।
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”