कमल महंत/कोरबा/पाली:-* कटघोरा वनमंडल के पाली वन विश्राम गृह से लगे तालाब का वर्षों पूर्व वन विभाग द्वारा आधा करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर लोगों के सकुन, शांति व मनोरंजन के लिए कराया गया सौंदर्यीकरण का कार्य रख रखाव के अभाव में उजड़कर अपनी आस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और इसकी सुंदरता फीकी हो चली है। जहां कराए गए सौंदर्यीकरण के एक भी कार्य सलामत नही है।
पाली वन परिक्षेत्र के अंतर्गत वन विभाग विश्राम गृह से लगे तालाब, जिसे लोग हथखोजा तालाब के नाम से जानते है। लगभग 9- 10 वर्ष पूर्व रेंजर रहे अरविंद तिवारी के कार्यकाल में इस तालाब का कायापलट के तहत आधा करोड़ से भी अधिक राशि की लागत से सौंदर्यीकरण का कार्य कराया गया था। तालाब में पचरी निर्माण व इसके सौंदर्यीकरण के साथ नाव बोट, मेढ़ में टाइल्स, सीमेंट कुर्सी व अन्य सौंदर्यीकरण कार्य के साथ वाटिका का रूप प्रदान किया गया था। जहां तात्कालीन रेंजर केदार नाथ जोगी के कार्यकाल तक इस तालाब के सौंदर्यीकरण का उचित देखभाल से सबकुछ ठीक- ठाक था, लेकिन वर्तमान हालात यह है कि सबकुछ उजड़कर इस तालाब की सुंदरता फीकी पड़ चुकी है जिसे विभाग ने भगवान भरोसे छोड़ दिया है। पहले यहां काफी उम्मीद के साथ लोग तनाव मुक्त होने व परिवार के साथ समय बिताने पहुँचते थे। किंतु अब टूटे- फूटे सामान देखकर उन्हें निराशा होती है। हाल ए समय मे निर्मित पचरी व आकृतियां जीर्णशीर्ण है, मेढ़ के अधिकतर टाइल्स उखड़ चुके है, सीमेंट की कुर्सियां भी आस्तित्व खो रहे, सुंदरता के लिए लगाए गए पेड़ पौधे नष्ट होकर जंगली झाड़ियां उग आई है। नौका विहार के लिए मौजूद नाव व फव्वारा सिस्टम गायब हो गए है। जहां अब कोई भी जाना गवारा नही समझता है। वन अधिकारियों की अनदेखी से बदहाल इस तालाब के मेढ़ में मवेशी बेधड़क घुसने लगे है तो दूसरी ओर शराबियों के लिए बैठकर शराब पीने का अड्डा बन चुका है। कुछ वर्षों पूर्व तक यह तालाब स्थानीय व आसपास लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र था लेकिन वर्तमान वन अधिकारियों के अनदेखी से यह तालाब अब धोबीघाट बनकर रह गया है। सूत्र बताते है कि विभागीय उपेक्षा के चलते अपनी सुंदरता खोकर आस्तित्व की लड़ाई कर रहे हथखोजा तालाब के देखरेख व विस्तार के नाम पर अनेको बार राशि व्यय की गई है, पर काम एक ढेला भी नही कराया गया है। नतीजतन दुर्दशा की मार झेल रहे तालाब को देखकर लोग बाग भी शर्मिंदा हो जाते है।