बिलासपुर की माटी में यह जादू है कि जिसकी सोंधकता और सम्मोहन में बंधकर जो यहां आकर रहा तो बस यही का हो करके रह गया । इस जादू का आलम यह है कि महज पचीस तीस वर्ष पूर्व जो शहर कस्बा नुमा था, आज वह बढ़कर महानगर का रूप ले चुका है। जो आबादी मुश्किल से एक डेढ़ लाख जनसंख्या थी ,वह आज की अवस्था में आठ लाख की जनसंख्या को पार कर रहा है ।बिलासपुर जिला वर्ष 1861 में गठित किया गया और इसके बाद वर्ष 1867 में बिलासपुर नगर पालिका का गठन किया गया। बिलासपुर जिला न केवल छत्तीसगढ़ राज्य में प्रसिद्ध है बल्कि चावल की गुणवत्ता, कोसा उद्योग और इसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि जैसी अनूठी विशेषताओं के कारण भारत में प्रसिद्ध है।छत्तीसगढ़ की न्यायधानी के नाम से
जाना जाने वाला बिलासपुर छत्तीसगढ़ का दूसरा प्रमुख शहर है। यह सिर्फ़ न्याय की खुशबू ही नहीं बिखेरता बल्कि यह सुगंधित दूबराज चावल की किस्म के लिए भी प्रसिद्ध है। छत्तीसगढ़ प्रदेश के उत्तरी हिस्से में स्थित बिलासपुर को अपने धार्मिक और पुरातात्विक महत्व के स्थलों के कारण विशेष पहचान मिलती है। साथ ही बिलासपुर के सीपत में एनटीपीसी का उर्जा-गृह है और एसईसीएल का मुख्यालय भी यहीं है।बिलासपुर शहर लगभग चार सौ वर्ष पुराना है। “बिलासपुर” का नाम “बिलासा” नाम की एक साहसी महिला के नाम पर रखा गया है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ की राजधानी रतनपुर हुआ करती थी। बताते हैं कि कलचुरी राजवंश के राजा कल्याण साय एक दिन अपने कुछ सैनिकों के साथ वर्तमान बिलासपुर नगर की अरपा नदी के किनारे जंगल पर शिकार करने पहुंचे। शिकार में मग्न राजा सैनिकों से अलग होकर जंगल में काफी भीतर पहुंच गए। अचानक राजा जंगली जीवों से घिर गए। जानवरों ने उन पर हमला कर दिया। राजा जमीन पर गिर गए। बिलासा बाई नाम की एक मछुआरिन घोड़े की आवाज सुनकर जंगल की ओर भागी। उसने वहां पर वन्यजीवों का मुकाबला कर राजा की जान बचाई। बाद में राजा ने ससम्मान बिलासा बाई को राजधानी बुलाया और उपहार स्वरूप अरपा नदी के दोनों किनारे की जागीर सौंप दी। बिलासा बाई के नाम पर इस क्षेत्र को बिलासपुर नाम दिया गया।
आइए बिलासपुर जिले के बारे में विस्तार से जानते हैं।
इस शहर का मूल स्वरूप 1774 के आसपास मराठा राजवंश के समय में आया था। 1854 में ब्रिटिश सरकार की ईस्ट इंडिया कंपनी ने बिलासपुर का अधिग्रहण कर लिया। बिलासपुर जिले का गठन 1861 में हुआ तथा बिलासपुर नगर पालिका 1867 में अस्तित्व में आया। वही नगर पालिका निगम का गठन 1981 में हुआ।
जिले की प्रशासनिक जानकारी
छत्तीसगढ़ शासन की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार बिलासपुर जिले का क्षेत्रफल 3508.48 वर्ग किलोमीटर है। बिलासपुर जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी यही स्थित है। जिले की कुल जनसंख्या 16,25,502 (2011 की जनगणना के अनुसार) है। यहाँ 1 नगरनिगम, 2 नगर पलिका परिषद, 4 नगर पंचायत, 5 ब्लॉक, 11 तहसील, 483 ग्राम पंचायत और 708 राजस्व ग्राम हैं।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय का गठन मध्य-प्रदेश पुनर्गठन नियम, (2000) के द्वारा हुआ। इसे देश के 19 वें उच्च-न्यायालय के रूप में मान्यता मिली। बिलासपुर के ग्राम बोदरी में स्थित छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश श्री आर.एस. गर्ग थे। बिलासपुर उच्च न्यायालय एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है।
शिक्षा
बिलासपुर में चार विश्वविद्यालय और अनेक महाविद्यालय हैं- गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय, पंडित सुन्दरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय और सी.व्ही. रमन विश्वविद्यालय नवीन कन्या महाविद्यालय, जमुना प्रसाद वर्मा स्नातकोत्तर कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, शान्ति निकेतन महाविद्यालय, ठाकुर छेदीलाल बेरिस्टर कृषि महाविद्यालय आदि स्थित है।
स्कूल
बिलासपुर में नवोदय विद्यालय, केंद्रीय विद्यालय, सरस्वती शिशु मंदिर, शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, लाल बहादुर शास्त्री उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, दिल्ली पब्लिक स्कूल दी जैन इंटरनेशनल स्कूल, बिरला इंटरनेशनल स्कूल, सेंट जेविएर्स स्कूल, सेंट फ्रांसिस स्कूल, सेंट जोसेफ आदि स्कूल हैं।
स्वास्थ्य
बिलासपुर के प्रमुख अस्पतालों में छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान सिम्स राज्य मानसिक स्वास्थ चिकित्सालय, जिला अस्पताल, आदि शामिल हैं। साथ ही बिलासपुर के कोनी में राज्य कैंसर संस्थान का निर्माण किया जा रहा है। जो लगभग पूर्णता की ओर अग्रसर है। भविष्य में यहां एम्स के स्थापना होने के भी संभावना है ।
- रेलवे
बिलासपुर रेलवे स्टेशन छत्तीसगढ़ के व्यस्ततम रेलमार्गों में से एक है और मध्य भारत में चौथा सबसे व्यस्त रेलमार्ग है। प्रदेश का सबसे पुराना रेल मंडल भी बिलासपुर रेल मंडल है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर देश के विभिन्न रेल ज़ोनों के बीच सबसे ज्यादा कमाई करने वाला ज़ोन है। यह भारत के लगभग सभी राज्यों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। राजधानी एक्सप्रेस बिलासपुर से नयी दिल्ली को जोड़ती है।
सड़क यातायात
बिलासपुर राष्ट्रीय राजमार्ग जाल के द्वारा मुंबई तथा कोलकाता से जुडा हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 130 इसे रायपुर से जोड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 111 बिलासपुर से प्रारंभ होता है जो कि अंबिकापुर तथा वाराणसी को जोड़ता है। बिलासपुर से राज्य के लगभग सभी हिस्सों को जोड़ने के लिए बस सेवाएं उपलब्ध हैं। हाल ही में बढ़ते हुए यातायात को देखते हुए नया बस स्टैंड तिफरा में स्थापित किया गया है।
हवाई यातायात
बिलासपुर हवाई अड्डे को बिलासा देवी केवट हवाई अड्डे के रूप में जाना जाता है। यह बिलासपुर से 10 किलोमीटर दक्षिण में चकरभट्टा में स्थित है। बिलासपुर हवाई मार्ग से सीधे तौर पर दिल्ली ,कोलकाता, भोपाल, प्रयागराज ,जबलपुर से जुड़ चुका है। हवाई सेवा में और भी विस्तार होने की संभावना है ,1942 में रॉयल एयरफोर्स द्वारा बनाया गया बिलासपुर हवाई अड्डा छत्तीसगढ़ का सबसे पुराना हवाई अड्डा है।
बिलासपुर की पौराणिकता और ऐतिहासिकता
वैसे तो बिलासपुर जिला पौराणिक दृष्टि से काफी समृद्ध है यहां पौराणिक काल के कई मंदिर वह ऐतिहासिक किले आज भी भागना वर्सेस में विद्यमान है जो पर्यटन के लिए काफी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। रतनपुर का ऐतिहासिक किला बादल महल सहित यहां माता महामाया का पौराणिक मंदिर अवस्थित है जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। रतनपुर को तालाबों की नगरी और मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है । रतनपुर में दर्जनों ऐसे छोटे-बड़े मंदिर हैं जहां दसवीं बारहवीं शताब्दी की मूर्तियां स्थापित हैं। मस्तूरी ब्लाक के इटवा पाली, मल्हार, रतनपुर, ताला गांव के अलावा पाली में पौराणिक काल की प्रतिमाएं हैं। ताला गांव में रुद शिव की बेहद दुर्लभ और अनोखी प्रतिमा स्थित है इस प्रतिमा की विशेषता है कि इसके मूर्तिकार ने शरीर रचना के लिए विभिन्न जीव जंतुओं के द्वारा मूर्ति का निर्माण किया है यह मूर्ति बताई जाती है कि पहले तंत्र-मंत्र तंत्र साधना के लिए बहुत बड़ा मुख्य केंद्र रहा। यह तकरीबन दस टन वजनी है। ताला का अपना पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व है। वही मल्हार में अवस्थित प्राचीन पातालेश्वर शिव मंदिर व अनेक मंदिरों के साथ किले के भी अवशेष आज भी विद्यमान है । मल्हार में ही प्रसिद्ध माता डिडनैश्वरी माता का भी मंदिर आकर्षण का केंद्र है। पिछले पचीस तीस वर्ष पूर्व यहां का आलम यह था कि अगर खुदाई की जाए तो निश्चित रूप से कुछ भी पुरानी वस्तुएं चाहे मूर्ति हो या भग्नावशेष हो या सोने चांदी के दुर्लभ सिक्के प्राप्त हो जाते थे।