कमल महंत/कोरबा/पाली:-* कटघोरा वनमंडल में पूर्ववर्ती शासनकाल के दौर से नित नए- नए भ्रष्ट्राचार के अध्याय लिखे जा रहे है, जहां भ्रष्ट्र कार्य इस कदर सिर चढ़कर बोल रहा है कि सरकार की ओर से विभाग को आबंटित राशि से गुणवत्ताहीन कार्य कराकर एक बड़े हिस्से की बंदरबांट हो रही है। जिसके कई मायने पूर्व में भी सामने आ चुके है और वर्तमान में भी आ रहे है, लेकिन शासन की ओर से कार्यवाही में उदासीनता के फलस्वरुप कटघोरा वनमंडल के अधिकारियों के हौसले आसमान की बुलंदियों पर जाकर हवा से बातें कर रही है। ताजा मामले में जंगली जानवरों को गर्मी के सितम से बचाने के लिए तालाब बनवाया गया था। लेकिन उसमें भी भ्रष्टाचार हो गया। अब आलम ऐसा है कि पहली बरसात में ही निर्मित तालाब बह गया। जिसमे अधिकारी निर्माण कार्य पूर्ण नही होने की बात कह रहे है।
ग्रीष्मकालीन समय मे पानी की तलाश में वन्यप्राणियों को भटकना न पड़े और जंगल छोड़ रिहायशी इलाकों की ओर रुख न कर सकें, इसके लिए पाली वन परिक्षेत्र के मुरली सर्किल अंतर्गत रतिजा बीट के कक्ष क्रमांक- 599, रतिज व अंडीकछार के जंगल मे पोस्ट डिपोजिट फंड से 97 लाख के 3 तालाब निर्माण की स्वीकृति मिली। जिन तालाबों को 3 माह पहले विभाग ने बनवाया। लेकिन वन्यप्राणियों को गर्मी से बचाने के लिए उठाया गया यह कदम विफल साबित हो गया। ऐसा इसलिए क्योंकि भ्रष्ट्राचार से निर्मित तालाबों ने पहले ही बारिश में दम तोड़ दिया। रतिजा में निर्मित तालाब का बारिश के पानी से मेढ़ फूट गया व पिचिंग भी बह गया। ग्रामीण दुबराज सिंह ने बताया कि उक्त तालाब निर्माण में एक से डेढ़ मीटर खोदाई का कार्य मशीन के माध्यम से कराया गया है। जिसमे नियमों को ताक पर रखकर पानी निकासी के लिए बनाए गए उलट नाला से तालाब का पानी नही निकल पाने के नतीजतन भराव के दबाव में मेढ़ के बीचोबीच का एक बड़ा हिस्सा फूट कर बह गया। वहीं इस तालाब निर्माण में पानी ठहराव के लिए एक ही मेढ़ तैयार किया गया है। ग्रामीणों का आरोप है कि वन्य प्राणियों के लिए तालाब निर्माण की आड़ में सरकारी धन से घटिया काम कर अधिकतर राशि का गबन किया गया है। इसी प्रकार अंडीकछार के जंगल मे बने 2 अन्य डबरीनुमा तालाब भी बारिश से क्षतिग्रस्त हो गए है। जिन निर्माण को देखकर लगता कि स्वीकृत 97 लाख का आधा राशि भी खर्च नही हुआ होगा। इस तरह वन विभाग द्वारा लाखों रुपए से निर्मित भ्रष्ट्राचार का तालाब पानी मे बह गया। कटघोरा वनमंडल में जनता के पैसे का दुरुपयोग आखिर कब रुकेगा और भ्रष्ट्र अधिकारियों पर आखिर नकेल कब कसेगा यह तो दुनिया का सृजन करने वाले विधाता को ही अब पता होगा।
अधिकारी ही ठेकेदार और इंजीनियर बन निर्माण कार्यों में बरतते अनियमितता
वन विभाग में होने वाले निर्माण कार्यों का पूरा लेखा- जोखा अधिकारियों को ही देखना होता है। चाहे डब्ल्यूबीएम सड़क निर्माण, रपटा, पुल- पुलिया, स्टापडेम या कोई भी निर्माण कार्य हो वह विभाग के अधिकारी ही सर्वेसर्वा ठेकेदार से लेकर इंजीनियर तक होते है। उन्हें इसीलिए किसी बात का कोई डर नही होता है और निर्माण कार्यों में जमकर अनियमितता को अंजाम देते है, क्योंकि इस विभाग के अधिकारियों को यह बात अच्छे से पता है कि उनके द्वारा कराए गए कार्यों की सत्यापन करने वाले वे ही होंगे। यदि कराए गए कार्यों पर कोई गड़बड़ी दिखती है या कुछ खुलकर सामने आता है तो उस काम को दोबारा मरम्मत के नाम पर योजना के तहत फिर से राशि निकाली जाती है।
निर्माण कार्यों के जानकारी से संबंधित नही लगाते सूचना बोर्ड
किसी भी शासकीय निर्माण मे निर्माण स्थल पर कार्य से संबंधित सूचना बोर्ड लगाना अनिवार्य होता है, जिससे पता चल सके कि जो कार्य अमुक जगह पर हो रहे अथवा हुए हैं वह कौन से योजना, कितने लागत की है। लेकिन वन विभाग के अधिकतर निर्माण कार्यों के सूचना बोर्ड नही लगाए जाते ताकि कार्य के स्वीकृत राशि के बारे में किसी को जानकारी न हो सके और विभाग के भ्रष्ट्राचारियों द्वारा अपने मनमौजी से कारनामा करते हुए निर्माण कार्य पूर्ण करके पैसे आहरण कर लिया जाता है। जिसमे बिना ऊपरी संरक्षण इस तरह के भ्रष्ट्राचार संभव नही।
मामले में क्या बोले जिम्मेदार ?
इस बारे में वन विभाग के उप वनमंडलाधिकारी चंद्रकांत टिकरिया से बात की गई तो उन्होंने कहा कि तालाब निर्माण का काम सही तरीके से हुआ है। पानी के दबाव के कारण मेढ़ का हिस्सा बहा है, जिसे सुधार कर लिया जाएगा व निर्माण कार्य अभी बांकी है। अब यहां पर एक बात समझ से परे है कि तालाब का निर्माण तो बारिश के पहले पूर्ण कर लिया जाता है, ताकि उसमे बारिश के पानी का भराव होने के साथ इसका लाभ मिल सके। लेकिन वन विभाग का यह कैसा तालाब जो बारिश में भी अधूरा है। ऐसे में जिस उद्देश्य को लेकर इसका निर्माण हुआ है, उसका लाभ मिलने में संचय है।