29 जुलाई बाघ संरक्षण दिवस पर विशेष-
पारिस्थितिकीय तंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक बाघ
सुरेश सिंह बैस शाश्वत/बाघ एक अनोखा जानवर है जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह एक शीर्ष शिकारी है, जो खाद्य श्रृंखला के शीर्ष पर है।और जंगली खुरों शाकाहारी जंगली जानवरों की आबादी को नियंत्रण में रखता है, जिससे शाकाहारी जीवों और जिस वनस्पति पर वे भोजन करते हैं, उसके बीच संतुलन बना रहता है। इसलिए, जंगल में बाघों की मौजूदगी पारिस्थितिकी तंत्र की भलाई का एक संकेतक है। इस शीर्ष शिकारी का विलुप्त होना इस बात का संकेत है कि इसका पारिस्थितिकी तंत्र पर्याप्त रूप से संरक्षित नहीं है, और न ही इसके बाद यह लंबे समय तक अस्तित्व में रहेगा।यदि बाघ विलुप्त हो गये तो पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो जायेगी।उदाहरण के लिए, जब मॉरीशस में डोडो विलुप्त हो गए, तो बबूल के पेड़ की एक प्रजाति का पुनर्जीवित होना पूरी तरह से बंद हो गया। इसलिए, जब कोई प्रजाति विलुप्त हो जाती है, तो वह अपने पीछे एक निशान छोड़ जाती है, जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है। हमें बाघ को बचाने की आवश्यकता का एक और कारण यह है कि हमारे जंगल जलग्रहण क्षेत्र हैं इसलिए, यह सिर्फ एक खूबसूरत जानवर को बचाने के बारे में नहीं है। यह सुनिश्चित करने के बारे में है कि हमारी भलाई बनी रहे क्योंकि जंगल स्वच्छ हवा, पानी, परागण, तापमान विनियमन आदि जैसी पारिस्थितिक सेवाएं प्रदान करने के लिए जाने जाते हैं।ब्ल्यूडब्ल्यूएफ का समर्थन करके, आप प्रतिष्ठित प्रजातियों और स्थानों को संरक्षित करने में मदद कर सकते हैं।टाइगर डे घोषित किया गया। तब से प्रतिवर्ष सभी देश इस तिथि को टाइगर डे के रूप में मना रहे हैं और टाइगर के बारे में जागरूकता फैलाते हुए उसके संरक्षण के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम व योजनाएं आयोजित कर रहे हैं। पता होगा ही कि टाइगर भारत का नेशनल एनिमल है।यह भारत के अलावा विश्व के अनेक भागों में पाया जाता है, लेकिन इसके ऊपर अब खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक पूरे विश्व में मात्र 3200 के करीब ही टाइगर बचे हैं। यह संख्या किसी भी प्रजाति के लिए काफी कम है। पिछले सौ सालों में धरती से टाइगर की लगभग 97 फीसदी आबादी खत्म हो चुकी है। इनकी कई प्रजातियां तो बिल्कुल ही विलुप्त हो गई हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर इनकी संख्या घटने की यही रफ्तार रही तो आने वाले एक-दो दशक में ही टाइगर का नामोनिशान इस धरती से मिट जाएगा।
पर्यावरणविदों का मानना है कि बाघों की संख्या घटने के लिए मानवीय हस्तक्षेप ज्यादा जिम्मेदार है। बाघों के रहने योग्य जंगलों की कमी, पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण की वजह से होने वाला और अवैध रूप से होने वाली बाघों की तस्करी ने इनकी संख्या को दिन-प्रतिदिन घटाने का ही काम किया है।क्यों घटती गई संख्या पर्यावरणविदों का मानना है कि बाघों की संख्या घटने के लिए मानवीय हस्तक्षेप ज्यादा जिम्मेदार है। बाघों के रहने योग्य जंगलों की कमी, पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण की वजह से होने व अवैध रूप से होने वाली बाघों की तस्करी ने इनकी संख्या को दिन-प्रतिदिन घटाने का ही काम किया है। बाघ परभक्षी की श्रेणी में शीर्ष हैं और अपने आवासों के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे शिकार की आबादी को विनियमित करने में मदद करते हैं और यह पारिस्थितिकी तंत्र में अन्य प्रजातियों के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है। बाघ भारत जैसे देशों में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण हैं और पर्यावरण पर्यटन के माध्यम से राजस्व उत्पन्न करने में मदद करते हैं। यह राजस्व स्थानीय समुदायों को समर्थन के साथ-साथ अर्थव्यवस्था में भी योगदान कर सकता है। बाघ हिंदू एवं बौद्ध धर्म सहित कई संस्कृतियों और धर्मों में एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रतीक हैं। बाघ वैज्ञानिक अनुसंधान का एक महत्त्वपूर्ण विषय हैं, क्योंकि यह एक कीस्टोन प्रजाति हैं तथा उनका संरक्षण उनके पारिस्थितिकी तंत्र में अन्य प्रजातियों की रक्षा करने में मदद कर सकता है। बाघ एक संकेतक प्रजाति है, जिसका अर्थ है कि उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का संकेत देती है। बाघों का संरक्षण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने में मदद कर सकता है। राष्ट्रीय बाघ गणना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा राज्य वन विभागों, संरक्षण, एनजीओ और भारतीय वन्यजीव संस्थान के साथ साझेदारी में प्रत्येक चार वर्ष में की जाती है। गणना ज़मीन-आधारित सर्वेक्षणों तथा कैमरा-ट्रैप से छवियों संयुग्मित नमूना पद्धति का उपयोग करती है।







