छत्तीसगढ़सारंगढ़ बिलाईगढ़

दिव्यांग के जीविकोपार्जन का साधन है बाबा गुरु घासीदास का गीत

सारंगढ़ बिलाईगढ़ 18 दिसंबर 2024/रायपुर के लोकल ट्रेन में एक आवाज जब बाबा गुरु घासीदास जी और तपोभूमि सोनाखान के जंगल का गाना गाते हुए बोगियों में गुजरता है तो अनायास यात्री उनके गीत की ओर आकर्षित होते हैं। यह गीत सीधे यात्रियों के दिल को छू लेता है। एक सुमधुर सौम्य आवाज जिनके बोल पर ट्रेन की आवाज संगीत देती है। बाबा के तपोभूमि का जिक्र और गुणगान का यह सिलसिला उस नेत्रहीन दिव्यांग और उसके महिला सहयोगी के जीविकोपार्जन का साधन है। यह प्रतिभा ट्रेन में अजनबी और छत्तीसगढ़ के लोगों तक प्रतिदिन दिखाई देता है।

ओ सोनाखान के,
दीदी ओ सोनाखान के,
भैया ग़ ओ सोनाखान के,
डहर नई मिले भैया ग़, ओ दिनमान के,
डहर नई मिले दीदी, ओ दिन मान के,
भारी जंगल हावे बहिनी ओ,
भारी जंगल हावे दीदी ओ,
ओ सोनाखान के,

जपे सतनाम ल …
तोर तपसी ल बघवा भालू देखे बाबा (2),
बैठे रहे उहां ओरी ओरी के,
बाबा बैठे रहे उहां ओरी ओरी के,
तैं तो तन ल तपाए गुरु,
तैं मन ल तपाए गुरु

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