छत्तीसगढ़विशेष लेख

बिरसा मुंडा जयंती – जनजाति गौरव दिवस

शिवप्रकाश राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री (भाजपा)

ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जल, जंगल, जमीन, जनजातीय पहचान और स्वतंत्र अस्तित्व पर मंडराए संकट को देखकर उसके संरक्षण हेतु अंग्रेजी शोषणकारी सत्ता के विरुद्ध “उलगुलान” आंदोलन चलाने वाले, धरती आबा की उपाधि से अलंकृत भगवान बिरसा मुंडा की यह 150वीं जयंती वर्ष है। उनका जन्म 15 नवम्बर 1875 को रांची जनपद के अलिहातू ग्राम में हुआ। अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया तथा 9 जून 1900 को जेल में ही उनका बलिदान हो गया। उनकी संघर्षमय स्मृति को चिरस्थायी रूप देने एवं युवा पीढ़ी को प्रेरित करने हेतु प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 15 नवंबर को “जनजातीय गौरव दिवस” घोषित किया। बिरसा मुंडा ने नशामुक्त जीवन, अंधविश्वास से मुक्ति, भूमि-सम्मान और अन्याय के प्रतिरोध की सीख समाज को दी। उन्होंने बेगारी प्रथा का विरोध किया और लगान न देने की घोषणा कर उलगुलान प्रारंभ किया। उनका नारा था—“अबुआ राज एते जाना, महारानी राज टुंडू जीना” अर्थात हमारा शासन शुरू हो, रानी का शासन समाप्त हो

जनजाति गौरव दिवस केवल बिरसा मुंडा को नहीं बल्कि उन सभी जनजातीय महापुरुषों को समर्पित है जिन्होंने संस्कृति, स्वतंत्रता और समाज उत्थान के लिए जीवन समर्पित किया। नागालैंड की महारानी गाइडन्यू ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह और नागा समाज में मतांतरण विरोधी हरक्का आंदोलन चलाया। राजस्थान के गोविंद गुरु भील समाज में अध्यात्म, सुधार और शोषण-विरोध के प्रतीक बने। रानी दुर्गावती, तिलका मांझी, अल्लूरी सीताराम राजू, टाट्या भील, सिद्धू–कानू मुर्मू आदि महानायक भारत के इतिहास का आधार हैं। आज भी मैरी कॉम, कोमालिका बारी, दिलीप तिर्की जैसे अनेक जनजातीय युवा देश का नाम रोशन कर रहे हैं।

जब यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियाँ विश्व में विस्तार के लिए निकलीं, तब उन्होंने मूल निवासियों का भयानक नरसंहार किया। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और न्यूजीलैंड का इतिहास इसका साक्षी है। मिशनरियों ने भी इस रक्तपात को वैचारिक आधार देकर स्थानीय समुदायों को मिटाने का प्रयास किया। 1883 में ईस्ट इंडिया कंपनी के वित्त मंत्री रिचर्ड टेम्पल ने मिशनरियों को आदिवासियों को लक्ष्य बनाकर “सफेद कागज़” की तरह प्रयोग करने की बात कही। मूल निवासियों की रक्षा हेतु संयुक्त राष्ट्र ने 1994 में 9 अगस्त को “विश्व मूल निवासी दिवस” घोषित किया, किंतु भारत में इसे षड्यंत्रपूर्वक “आदिवासी दिवस” कहकर भटका दिया गया, जबकि भारत के जनजातीय और अन्य समुदाय सभी इसी भूमि के मूल निवासी हैं। यहाँ आदिवासियों पर कभी अत्याचार नहीं हुए, बल्कि वे भारतीय संस्कृति के संवाहक रहे हैं, इसलिए भारत में “विश्व मूल निवासी दिवस” की अवधारणा अप्रासंगिक है।

जनजातीय समाज में मतांतरण और विभाजन की भावना फैलाने हेतु नए-नए आंदोलन खड़े किए जा रहे हैं। 1994 की सीवीसीआई पुणे बैठक में बताया गया कि मिशनरी दलित मुक्ति आंदोलन, आदिवासी मुक्ति आंदोलन और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर सक्रिय हैं। “हम रावण वंशज हैं”, “हमारा देवता महिषासुर है”, “हमारा धर्म अलग है” जैसे आंदोलन इसी षड्यंत्र की उपज हैं। अर्बन माओवादी और मानवाधिकारवादी समूह भी इसमें शामिल हैं, जिनका वैश्विक नेटवर्क तैयार हो चुका है। नक्सलवाद ने भी शोषण मुक्ति के नाम पर हजारों युवाओं को हिंसा की राह पर धकेलकर विकास बाधित किया।

प्रकृति-पूजक जनजातीय समाज सनातन संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है; उनकी जल–जंगल–जमीन के प्रति श्रद्धा वैसी ही है जैसी सनातन परंपरा में नदियों, वट–पीपल–तुलसी, भूमि और पशुओं को पूज्य माना जाता है। शिव की सवारी बैल, गणपति का हाथी-शीर्ष, सर्पों का पूजन, कृष्ण का नील वर्ण, माता काली का काला रूप—ये सभी समावेशी भारतीय दर्शन के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। राम का छत्तीसगढ़ से संबंध, कृष्ण की पत्नी रुक्मणी का मणिपुर–अरुणाचल से जुड़ाव, जनजातियों में प्रचलित प्राचीन परंपराएँ—ये सब यह सिद्ध करते हैं कि जनजातीय संस्कृति को जड़ात्मवादी कहना गलत है; यह अरण्य में तप करने वाले ऋषियों की अरण्य संस्कृति का ही विस्तार है, जिसे जनजातीय समाज ने संरक्षित रखा।

जनजातीय उत्थान हेतु केंद्र सरकार ने स्वतंत्र जनजाति मंत्रालय, जनजाति आयोग का गठन किया। प्रधानमंत्री मोदी जी ने वनोपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि, स्टैंडअप इंडिया के तहत 1 लाख से 10 करोड़ तक उद्यमिता सहायता और सिकल सेल उन्मूलन जैसी ऐतिहासिक योजनाएँ लागू कीं। आज देश में राष्ट्रपति, राज्यपाल और अन्य संवैधानिक पदों पर जनजातीय नेतृत्व प्रतिष्ठित है। मोदी सरकार और गृह मंत्रालय के संकल्प से नक्सलवाद-मुक्त भारत बन रहा है, जिससे जनजातीय क्षेत्र का विकास तेजी पकड़ रहा है।

भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर जनजाति गौरव दिवस मनाने का अर्थ है—जनजातीय समाज के योगदान को स्मरण करना, उनके विकास में सहयोग का संकल्प लेना और नक्सलवाद मुक्त भारत के संकल्प के साथ खड़े होना। हमारी संस्कृति एक है और सभी महापुरुष समान हैं—यह भाव अपनाकर ही षड्यंत्रों को परास्त किया जा सकता है। यही संकल्प जनजाति गौरव दिवस की सार्थकता है और भगवान बिरसा मुंडा को सच्ची श्रद्धांजलि भी।

शिवप्रकाश
राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री (भाजपा)

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