छत्तीसगढ़बिलासपुर

जूना बिलासपुर के ऐतिहासिक घाट उपेक्षा के शिकार, बदहाल हालात पर उठे सवाल

सुरेश सिंह बैस/बिलासपुर। मां बिलासा की नगरी में स्थित सबसे प्राचीन बसाहट जूना बिलासपुर के अरपा नदी तट पर बने ऐतिहासिक घाट आज उपेक्षा और अव्यवस्था के बीच अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। नगर की शुरुआती बसाहट के रूप में पहचाने जाने वाला यह क्षेत्र कभी जलदायिनी अरपा नदी के किनारे बसा एक जीवंत तटवर्ती गांव था, जहां केवट-मल्लाह समुदाय की बस्तियां अधिक थीं। इसी समुदाय की बिलासा केवंटिन के नाम पर शहर का नाम बिलासपुर पड़ा माना जाता है

जूना बिलासपुर में अरपा में 11 घाट

स्थानीय जानकारों के अनुसार, अरपा नदी के इस तट पर कभी 11 प्रमुख घाट सक्रिय थे-मोपका नाका घाट, बड़घाट, काली मंदिर घाट, डोंगा घाट, डुमर घाट, जनकबाई घाट, साव धर्मशाला घाट, केंवटपारा घाट, बिलसीया घाट और पचरी घाट प्रमुख हैं। कभी इन घाटों पर स्थानीय लोगों की दैनिक गतिविधियां, पूजा-पाठ, नहाना-धोना, बच्चों का खेलकूद और नदी पार से कृषि उपज लेकर आने वाले व्यापारियों की आवाजाही लगी रहती थी।समय बीतने पर हालांकि वर्तमान में इन घाटों की स्थिति बेहद जर्जर हो चुकी है।गंदगी, झाड़-झंखाड़ और अव्यवस्था के कारण ये घाट लगभग विरान और अनुपयोगी हो गए हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि घाटों की नियमित सफाई, संरक्षण या सुधार कार्य वर्षों से नहीं हुआ है। कुछ स्थानों पर अवैध कचरा फेंकने की समस्या भी बढ़ गई है। निवासियों का आरोप है कि शासन और स्थानीय प्रशासन इन घाटों की स्थिति से पूरी तरह बेखबर या उदासीन हो चुका है।उनका कहना है कि शहर की इन ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित किए जाने की जरूरत थी, लेकिन उपेक्षा के चलते वे अपनी मूल पहचान और महत्व खोते जा रहे हैं।विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते संरक्षण और पुनरोद्धार की पहल नहीं की गई तो जूना बिलासपुर की यह सांस्कृतिक विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जाएगी।स्थानीय नागरिकों ने घाटों की सफाई, सौंदर्गीकरण और पुनर्जीवन की मांग करते हुए प्रशासन से तत्काल ध्यान देने की अपील की है।

अरपा के घाटों की दुर्दशा के लिए नौकरशाही भी जिम्मेदार

अरपा नदी की दुर्दशा के साथ-साथ अरपा के घाटों को भी पूरी तरह से दूरावस्था में पहुंचा दिया गया है। पचरीघाट के बिगाड़ दिए गए स्वरूप की निंदा करते हुए कहा कि ये घाट शहर की पहचान थे, शहर की संस्कृति और संस्कार के वाहक थे। इन्हें भी आज महज स्वार्थ पूर्ति के लिए मटियामेट कर दिया गया है। अधिकारीवर्ग जो शहर की संस्कृति, संस्कार और विरासत से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं, वे बेदर्दी से नदी और नदी के घाटों की उपेक्षा कर विकास का ढोल‌ पीट रहे हैं। फलतःअब घाट पूरी तरह समाप्त हो गए हैं। जब तक इनका संरक्षण और विकास नहीं किया जाएगा शहर की पहचान भी उसी तरह मिट जाएगी।

सोमनाथ यादव, संयोजक/अरपा बचाओ अभियान एवं पूर्व

सोमनाथ यादव

अध्यक्ष, पिछड़ा वर्ग आयोग

इन घाटों का पुनरुद्धार होना जरूरी

शहर की पुरानी बस्ती जूना बिलासपुर में ही अरपा नदी के केंवट घाट ऊपर ही मेरा निवास है। सुबह उठते ही मां अरपा के दर्शन होते हैं। नदी और घाट को देखते ही मन में एक कशक सी उठती हैं कि पहले की अरपा और आज की अरपा में कितना अंतर आ गया है। पहले नदी के घाटों में जहां जीवन सांस लेता था। ये घाट लोगों की दिनचर्या के अहम हिस्सा होते थे।इन घाटों की चहलपहल और रौनकें जो पूरी तरह से वीरान और सुनसान हो गए। अब तो इन घाटों की अवस्था भी पूरी तरह खराब चली है। बेजाकब्जा और गंदगी उपेक्षा के कारण यह घाट अपने अंतिम दिनों की पहुंच गए हैं। नदी और इसके घाटों का ख्याल रखा जाना अति आवश्यक है।

अशोक व्यास

अशोक व्यास/साहित्यकार, बिलासपुर

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