छत्तीसगढ़सारंगढ़ बिलाईगढ़

संत शिरोमणि गुरु घासीदास जी से साक्षात्कार

सारंगढ़/ प्रीत के दियना बारत हावा, सत के धजा गाड़त हावा अंगना,ओ संत शिरोमणि करत हवाँ प्रणाम !
जुग-जुग ल रिहि तोर पावन नाम!!

छत्तीसगढ़ प्रान्त की सामाजिक सांस्कृतिक परम्पराओं की धुरी और संत परम्परा में अग्रणी गुरु घासीदास का नाम सर्वोपरि है। गुरु घासीदास का जन्म चौदशी पौष माह संवत 1700 को बिलासपुर जिले के गिरौदपुर नामक ग्राम में हुआ था।इनकी माता अमरौतिन तथा पिता का नाम महंगूदास था ।

पौष माह चौदस तिथि,दिन रहिस सोमवार, सूरूज ह निकलिस, गुरु बाबा रूप अवतार !!

गुरु घासीदास बाल्यावस्था से ही समाज में व्याप्त कुप्रथाओं को देखकर व्यथित हो जाते थे। शोषित वर्ग और निर्बल लोगों के उत्थान के लिए इस नन्हें बालक का हृदय छटपटाने लगता था, तड़प उठता था।

गुरु घासीदास जब बालक थे।शांत और एकांत प्रिय रहते । आत्मसाक्षात्कार ही इनके जीवन का मुख्य लक्ष्य था। पशु बलि, तांत्रिक अनुष्ठान,जातिगत विषमता, जाति विभिन्नता, लोगों की उन्नति के लिए उनकी आत्मा में एक कसक उभर जाती थी।

सत्य का साक्षात्कार करने को आकुल मन, जगन्नाथ पुरी को गुरु ने किया गमन,
किन्तु कुछ अद्भुत घट आया,
सारंगढ़ की पुष्प वाटिका में
आत्मबोध उन्होंने पाया,
जय सतनाम जय सतनाम जपते वापस आए,
छाता पहाड़ में की समाधि,
सोना खान में औंरा धौंरा ,
दिव्य ज्ञान प्रकाश सतनाम,
जय सतनाम जय सतनाम !!

गुरु घासीदास जी ने भक्ति का अति अद्भुत और नवीन पंथ प्रस्तुत किया, जिसे सतनाम पंथ कहा गया। जिसमें सतनाम पर विश्वास, मूर्ति पूजा का निषेध, हिंसा का विरोध, व्यसन से मुक्ति, पर स्त्री गमन की वर्जना और दोपहर में खेत न जोतना हैं।उनका स्पष्ट कहना था।

मिट्टी का तन यह मिट्टी में मिल जाएगा,
निरीह पशुओं से प्रेम करो प्रेम मिल जाएगा ,
भीतर के ईश्वर को खोजो उसे देखो,
ईश्वर सबके हृदय के
भीतर मिल जाएगा।

छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा पंथी नृत्य को गुरु घासीदास जी की वाणी को मन में धारण कर भाव विभोर होकर नृत्य करते हैं।

श्वेत ध्वज का प्रतीक चिन्ह,
ढोल मंजीरा की थाप,
गुरु घासीदास की छबि के सम्मुख,
गोल भंवर सुंदर नृत्य नाच ,

गुरु घासीदास आत्मा की कोर कोर में बह रहे, मन भावातिरेक होकर कह रहा ,

जग में बगराये तें हर सत के नाम,
जय सतनाम ! जय सतनाम !
सत अऊ मानवता तें अजर अमर नाम
जीत के खम्भा प्रणाम जैतखाम !!
कहाँ ले चढ़ावां ग तोला आरुग फूल,
मन ल समर्पित करत हावां गुरु ,
इहर सबले सच्चा फूल !

संत शिरोमणि गुरुघासीदास जी 30 फरवरी 1850 को ब्रह्मलीन हो गए ।आइये बाबा के मार्ग पर चलकर जीवन को सफल बनाएँ । उनके सिखाए राह पर चलकर
प्रेम,भाईचारा ,भक्ति की बातों को समझें।

सत्य,अहिंसा, करुणा के प्रकाश स्तम्भ संत शिरोमणि गुरु घासीदास जी की जय हो ।

*प्रियंका गोस्वामी, राजापारा, सारंगढ़, छत्तीसगढ़*

Related Articles

Back to top button