बिलासपुर, 18 सितम्बर/शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम के तहत कथित फर्जीवाड़े के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग पर कड़ा रुख अपनाया है। बुधवार को जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की अध्यक्षता वाली डिवीजन बेंच ने शिक्षा सचिव की अनुपस्थिति पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा— “अदालत को मजाक न समझें।”
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि शिक्षा सचिव अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों और शपथपत्र देकर स्पष्ट करें कि अब तक आरटीई नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है। इस मामले की अगली सुनवाई 17 अक्टूबर 2025 को होगी।
यह जनहित याचिका भिलाई के सामाजिक कार्यकर्ता भगवंत राव ने अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर के माध्यम से दायर की है। याचिका में गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि गरीब बच्चों के लिए आरक्षित सीटों पर फर्जी दस्तावेजों के जरिए संपन्न परिवारों के बच्चों को दाखिला दिलाया जा रहा है। साथ ही, कई निजी स्कूल बिना मान्यता के नर्सरी और केजी की कक्षाएं चला रहे हैं, जिनकी वैधता संदिग्ध है।
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान शिक्षा विभाग से तीखे सवाल किए—
- फर्जी दस्तावेजों के जरिए प्रवेश दिलाने वालों और इसमें शामिल अधिकारियों पर क्या कार्रवाई हुई?
- बिना मान्यता वाले निजी स्कूलों के खिलाफ अब तक क्या कदम उठाए गए?
हाईकोर्ट ने साफ किया कि यह मामला गरीब बच्चों के शिक्षा के अधिकार से जुड़ा है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने अदालत के इस सख्त रुख का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि दोषियों पर शीघ्र कार्रवाई होगी।